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________________ स्मृति कहिए। ऐसे इत्यादिक प्रकार स्वानुभव विप परोक्ष प्रमाण कर ही आत्मा विप परिणाम मग्न हो ताका कछ विशेष जानपान होता नाही । वहुरि यहा प्रश्न - ___ जो सविकल्प निर्विकल्प विषे जानने का विशेष नाही तो अधिक आनन्द कैसे होय है। ताका समाधान-सविकल्प दशा विपै ज्ञान अनेक ज्ञेयको जानने रूप प्रवत था ते निर्विकल्प दशा विर्षे केवल आत्मा को ही जानने मे प्रवर्त्या, एक तो यह विशेपता है, दूसरी यह विशेषता है जो परिणाम नाना विकल्प विप परिणाम था सो केवल स्वरूप ही सौ तदात्मरूप होय प्रवा, तोजी यह विशेषता है कि इन दोनो विशेषताओ के होते वचनातीत अपूर्व आनन्द होय है। जो विषय सेवन विषे उसके अश की भी जात नाही तातें उस आनन्दकौं अतेन्द्रिय कहिये । वहुरि यहा प्रश्न - ___ जो अनुभव विषे भी आत्मा सो परोक्ष ही है तो ग्रन्थन विषे अनुभवकू प्रत्यक्ष कैसे कहिए। ___ ऊपर की गाथा विष ही कहा है। "पच्चाखा अणहवो जम्ही ताका समाधान अनुभव विप आत्मा तो परोक्ष ही है, कछ आत्मा के प्रदेश आकार तो भासते नाही परन्तु जो स्वरूप विपे परिणाम मग्न होते स्वानुभाव भया, सो वह स्वानुभव प्रत्यक्ष है । स्वानुभवका स्वाद कछ आगम अनुमानादिक परोक्ष प्रमाणादिक कर न जाने हैं। आप ही अनुभव के रस, स्वादको वेदै है । जैसे कोई अन्धा पुरुप मिश्रीको आस्वादे है, तहा मिश्रीके आकारादिक तो परोक्ष है, जो जिहवाकरि जो स्वाद लिया है सो वह स्वाद प्रत्यक्ष है ऐसा जानना । अथवा जो प्रत्यक्ष की सी नाई होय तिसको भी प्रत्यक्ष कहिए। जैसे लोक विषे कहिये है-हमने स्वप्न विष वा ध्यान विषै फलाने पुरुषको प्रत्यक्ष देखा, सो प्रत्यक्ष देखा नाही, परन्तु प्रत्यक्षकीसी नाई प्रत्यक्षवत् यथार्थ देखा तातें प्रत्यक्ष कहिए । तैसे अनुभव विप आत्मा प्रत्यक्ष की नाई यथार्थ प्रतिभासे है ताते इस न्याय करि आत्माका भी प्रत्यक्ष जानना होय है ऐसे कहिए है सो दोप नाही। कथन तो अनेक प्रकार होय परन्तु वह सर्व आगम अध्यात्म शास्त्रनसो विरोध न होय तैसे विवक्षा भेद करि कथन जानना । यहा प्रश्न . - जो ऐसे अनुभव कौन गुणस्थानमे कहे हैं। ताका समाधान-चौथे ही से होय है परन्तु चौथे तो वहत कालके अन्तरालमें होय है । और ऊपरके गुणठाने शीघ्र होय हैं । वहुरि प्रश्न - जो अनुभव तो निर्विकल्प है तहा ऊपर के और नीचे के गुणस्थाननि मे भेद कहा। ताका उत्तर-परिणामन की मग्नता विषै विरोध है। दोय पुरुष नाम ले है अर दो ही का परिणाम नाम विप है तहा एककै तो मग्नता विशेष है अर एकक स्तोक है तैसे जानना । वहुरि प्रश्न : जो निर्विकल्प अनुभव विप कोई विकल्प नाही तो शुक्ल ध्यान का प्रथम भेद 30 ] • मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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