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________________ "पाद्य परोक्षं प्रत्यक्षमन्यत्" ऐसा सूत्र कहा है तथा तर्कशास्त्र विषे ऐसा लक्षण प्रत्यक्ष परोक्षका है - __"स्पष्टप्रतिभासात्मकं प्रत्यक्षमस्पष्टं परोक्षं" । ___ जो ज्ञान अपने विषयको निर्मलतारूप नीके जाने सो प्रत्यक्ष अर स्पष्ट नीके न जाने सो परोक्ष, सो मतिज्ञान थ तज्ञान का विपय तो घना परन्तु एक ही ज्ञेयको सम्पूर्ण न जान सके तातै परोक्ष है और अवधि मन पर्यय के विषय थोरे है, तथापि अपने विषयकौं स्पष्ट नीके जाने ताते एक देश प्रत्यक्ष है, अर केवल ज्ञान सर्व ज्ञेयको आप स्पष्ट जानै ताते सर्व प्रत्यक्ष है। वहरि प्रत्यक्ष के दोय भेद है। एक परमार्थ प्रत्यक्ष दूसरा व्यवहार प्रत्यक्ष है। सो अवधि मन पर्यय केवल तो स्पष्ट प्रतिभासरूप है ही तातै पारमार्थिक है। बहरि नेत्रादिकते वरणादिकको जानिए है । ताते इनको साव्यवहारक प्रत्यक्ष कहिए, जाने जो एक वस्तु मे मिश्र अनेक वर्ण है ते नेत्र कर नीके ग्रह जाय है। ___ वहरि परोक्ष प्रमाण के पाच भेद है-1 स्मृति, 2 प्रत्यभिज्ञान, 3 तर्क, 4 अनुमान, 5 आगम । तहा जो पूर्व वस्तु जानी को याद करि जानना सो स्मृति कहिये । दृष्टात कर वस्तु निश्चय कीजिये सो प्रत्यभिज्ञान कहिये । हेतुके विचारते लिया जो ज्ञान सो तर्क कहिए। हेतू साध्य वस्तुका जो ज्ञान सो अनुमान कहिए। प्रागमतें जो ज्ञान होय सो आगम कहिए। ऐसे प्रत्यक्ष परोक्ष प्रमाण के भेद किये है सोई स्वानुभव दशा मे जो आत्मा को जानिए सो श्र तज्ञान कर जानिए है। श्रु तज्ञान है सो मतिज्ञान पूर्वक ही है, सो मतिज्ञान श्रु तज्ञान परोक्ष कहै ताते यहा आत्मा का जानना प्रत्यक्ष नाही। बहुरि अवधि मन पर्यय का विषय रूपी पदार्थ ही है अर केवलज्ञान ह.दयरूप के है नाही तातै अनुभव विषै अवधि मन पर्यप केवल करि आत्मा का जानना ना हो । बहुरि यहा आत्माक स्पष्ट नोके नाही जाने है, तातै पारमार्थिक प्रत्यक्षपना तो सम्भव नाही, बहुरि जैसे नेत्रादिक जानिए है तातै एक देश निर्मलता लिये भी आत्मा के असख्यात प्रदेशादिक न जानिए है ताते साव्यवहारिक प्रत्यक्षपणे भी सम्भव नाही। ___ यहा पर तो आगम अनुमानादिक परोक्ष ज्ञानकरि आत्मा का अनुभव होय है । जैनागम विषे जैसा आत्माका स्वरूप कहा है ताक तैसा जान उस विष परिणामो को मग्न कर है ताते आगम परोक्ष प्रमाण कहिए, अथवा मै आत्मा ही हू तातें मुझ विष ज्ञान है । जहा-जहा ज्ञान तहा-तहा आत्मा है जैसे सिद्धादिक है। बहुरि जहा आत्मा नही तहां ज्ञान भी नाही जैसे मृतक कलेवरादिक है। ऐसे अनुमान करि वस्तु का निश्चय कर उस विष परिणाममग्न करै है, ताते अनुमान परोक्ष प्रमाण कहिए अथवा आगम अनुमानादिक कर जो वस्तु जानने में आया तिसहीको याद रखकै उस विपे परिणाम मग्न कर है ताते • मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे [ 29
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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