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________________ के साधु भी दिगम्बर श्रावको के लिये पाण्डुलिपि करते रहे । मलतान में कितने ऐसे भी पडित भी थे जो शास्त्र प्रवचन के साथ-साथ प्राचीन ग्रन्थो की पाण्डुलिपियां करने का कार्य भी करते थे, ऐसे पडितो मे प वीरदास, प रामदास, प दानचन्द के नाम उरलेखनीय है। सवत 1801 से 1900 तक सवत 1800 के पश्चात मुलतान दिगम्बर जैन समाज का देश के सभी नगगे से सम्बन्ध हो गया। मुलतानी भाई ग्रन्थो की तलाश मे चन्देरी, मालपुग (राजस्थान) वाराणसी, हनुमानगढ, इन्दौर, सागानेर, जयपुर, पालम-दिल्ली, ललितपुर जैसे नगरो मे ग्रन्थो की प्रतिलिपियाँ करवा कर अपने शास्त्र भण्डार के लिये पाण्डुलिपियो का संग्रह करते रहे। जयपुर एव आगरा से उनका विशेप सम्बन्ध था। अध्यात्म की लहर तेजी से चल रही थी। अध्यात्म की इस लहर के प्रमुख प्रस्तोता ये महाकवि वनारसीदास जिनके कारण उत्तर भारत के दिगम्बर जैन समाज की काया ही पलट गयी। वे अध्यात्म ग्रन्थो के पाठक वन गये और रात दिन आत्मा और शरीर पर चर्चा करने लगे। इसके पश्चात सागानेर मे बनारसीदास की मृत्यु के कोई 25 वर्ष पश्चात ही हिन्दी कवि जोधगज गोदीवा के पिता अमरा भौसा ने तेरहपय के नाम से एक नवीन पथ की स्थापना की और दिगम्बर जैन भट्टारको द्वारा प्रचलित शिथिलाचार के विरुद्ध अवाज उठाई गयी। यह पहिला अवसर था जब एक पन्थ की स्थापना किसी श्रीमन्त श्रावक द्वारा की गयी हो। बमरा भौसा मे अदभुत सगठन शक्ति थी इसलिये उसे भट्टारको के युग मे भी उन्ही के विरुद्ध एक नयी विचारधारा को जन्म दिया। __ इस तेरहपथ विचारधारा का केन्द्र धीरेधीरे सागानेर से जयपुर वन गया और यहाँ एक नयी विभूति का उदय हुआ। वह विभूति महापडित टोडरमलजी के रूप में समाज के सामने आयी । टोडरमलजी अपने समय के सर्वाधिक लोकप्रिय पडित थे, जैन धर्म के ज्ञाता थे तथा गोमट्टसार, समयसार, त्रिलोकसार, लब्धिसार जैसे उच्चस्तरीय प्राकृत ग्रन्थो के मर्मज्ञ विद्वान थे । वे श्री शान्तिनाथ दि जैन बडामन्दिर तेरह पथियान् घी वालो का रास्ता, जौहरी बाजार मे नित्य प्रवचन किया करते थे। जब वे शास्त्र प्रवचन, करते तो सैकडो हजारो स्त्री-पुरुष उनकी प्रवचन सभा मे होते और ___महा पडित टोडरमलजी उनकी अपूर्व प्रवचन शैली से अध्यात्म तत्व चर्चा का आनन्द लेते। सवत 1811 के पहिले ही उनकी ख्याति राजस्थान की सीमा पार करके उत्तर मे मुलतान तक पहुच गयी थी। A 24 ] • मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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