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________________ वहाँ के श्रावक पहिले से ही अध्यात्म ग्रन्थो के मर्मज्ञ थे तथा समयसार, प्रवचनमार, पचास्तिकाय जैसे ग्रन्थो का स्वाध्याय करते रहते थे । वहाँ भी नियमित सैली थी जिसमे समाज के सभी स्त्री पुरुष भाग लेते थे । शका समाधान भी होते थे लेकिन कुछ शकायें ऐसी होती थी जिनका समाधान पूर्णरूप से नही हो पाता था । जब उन्हे प टोडरमल जी की विद्वत्ता, पाडित्य एव चर्चा सम्बन्धी ज्ञान की जानकारी मिली तो उन्होने अपनी शकाओं के समाधान चाहने के लिये भारी उत्सुकता प्रकट की । उन्होने पत्र द्वारा अपनी शकाओ को लिखकर भेजने का निश्चय किया । आखिर पत्र लिखा गया और वह पडित टोडरमलजी के पास पहुचा दिया गया । वह मूल पत्र तो किसी शास्त्र भण्डार प्राप्त नही हुआ है लेकिन प टोडरमलजी ने जो उनकी शकाओ का समाधान किया वह चिट्ठी के रूप मे है और वह जयपुर एवं सुलतान के शास्त्र मे भण्डारो सुरक्षित है । उस चिट्ठी का नाम रहस्यपूर्ण चिट्ठी है जो वास्तव से ही रहस्यपूर्ण हैं | प टोडरमलजी की सम्भवत यह प्रथम रचना है जो मुलतान एव जयपुर जैन समाज के लिये धरोहर के रूप मे सुरक्षित है । महापडित टोडरमलजी ने रहस्यपूर्ण चिठी सवत 1811 माघ वदी 5 के दिन तथा मुलतान निवासी खानचन्दजी, गंगाधरजी, श्रीपालजी, सिद्धार्थदासजी एव अन्य साधर्मी भाइयो के नाम लिखी थी । इनमे गंगाधर श्रावक तो साह सोमजी के पुत्र थे जिन्होने सवत 1797 मे ब्रह्मविलास की प्रतिलिपि कराई थी तथा जो मुलतान दिगम्बर जैन मन्दिर आदर्शनगर जयपुर के शास्त्र भण्डार मे सुरक्षित है । ये सभी दिगम्बर जैन श्रावक थे क्योकि प टोडरमलजी मे अपनी चिट्ठी मे इन्हे साधर्मी भाई लिखा है । इसके अतिरिक्त प टोडरमलजी ने भाई श्री रामसिंहजी एवं भुवानी दास का भी पत्र जो जिहानाबाद से आया था उसका भी उल्लेख उक्त पत्र या चिट्ठी मे किया है । प्रस्तुत पत्र प टोडरमलजी के पास किसके माध्यम से आया था इसका कोई उल्लेख नही किया गया है । रहस्यपूर्ण चिट्ठी पूर्णत चर्चा प्रधान है तथा उसमे गोम्मटसार समयसार, अष्टसहस्वी तत्वार्थ सूत्र आदि ग्रन्थो के आधार पर शकाओ का समाधान किया गया है । यह चिट्ठी अत्यधिक महत्वपूर्ण है तथा मुलतान एव जयपुर दोनो के लिये स्मरणीय पाती है जिसे हम अविकल रूप से पाठको की जानकारी के लिए यहाँ उद्दत कर रहे है । रहस्यपूर्ण चिट्ठी सिद्ध श्री सुलताने नग्र महाशुभस्थान विषे, साधर्मी भाई अनेक उपमा योग्य अध्यात्मरस रोचक भाई श्री खानचन्दजी, गंगाधरजी, श्रीपालजी, सिद्धार्थदासजी, अन्य सर्व साधर्मी योग लिखत टोडरमल के श्री प्रमुख विनय शब्द अवधारना । यहाँ यथा सभव आनन्द है तुम्हारे चिदानन्द घनके अनुभव से सहजानन्दकी वृद्धि चाहिये । मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के आलोक मे [ 25
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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