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________________ प० वीरदास के प्रमुख शिष्य विमलदास । मिट्ठूमल भडसाली गोत्र के दिगम्बर जैन श्रावक थे । संवत 1770 मे मुलतान में ही उन्होने ब्रह्म विलास की प्रतिलिपि करायी थी जिसमे साह श्री मिट्ठूमल को जिन धर्मदीपक, शुद्धात्म स्वरूप सवेदक की उपाधि से अलकृत किया है । I अध्यात्मी श्रावक चाहुडमल जिसके लिए सुमतिरग ने सवत 1722 मे प्रवोध चिन्तामणि चौपाई एवं योगशास्त्र चोपाई की रचना की थी वह चाहुडमल खेचादेश में उत्पन्न हुए थे । वे श्रावक थे, पुण्यप्रभावक एव देव शास्त्र गुरु के भक्त थे । उनके पुत्र साह लीलापति थे जो भी आध्यात्मिक चर्चाओ मे विशेष रूचि लेते थे । उन्होने अपने पढने के लिये संवत 1750 कार्तिक शुक्ला पचमी के शुभ दिन धर्म चर्चा ग्रन्थ की प्रतिलिपि कराई थी ।प्रतिलिपि करने वाले प० राजसी थे जिन्होंने मुलतान मे ही धर्मचर्चा ग्रन्थ की प्रतिलिपि की थी । उसके पश्चात् मुनि मेरुगणि के शिष्य स्थिर हपंगणि तथा उनके शिष्य पं० प्रवर श्री कीर्तिसोभाग्यगणी के भी शिष्य पं० रत्नधीर ने प्रतिलिपि की थी।± संवत् 1753 मे फिर साह लीलापति के पढने के लिये मुलतान नगर में ही वचनसार की प्रतिलिपि की गयी । प्रतिलिपि करने वाले प खेमचन्द के मुख्य शिष्य पं० अजैराज थे जो मुलतान निवासी ही थे । इसी चाहुडमल के दूसरे पुत्र थे साह भैरवदास । वे भी अध्यात्म प्रेमी श्रावक थ । उन्होंने अपने लिये संवत 1748 में बनारसीदास विलास एवं समयसार नाटक की प्रतिलिपि कराई थी । * एक दूसरी प्रशस्ति में भैरवदास के पुत्र भोजराज भेलामल्ल का उल्लेख आया है । उनके स्वाध्याय के लिये "चतुर्विंशति जिनचरण गीत" की इसी सवत 1. संवत् 1770 मगसिर सुदी 13 दिने पुस्तकमिदं लिपिकृतं मूलस्थाने शुभं भवतु । ब्रह्मविलास पत्र स० 258 उसवाल जातीय श्री जिनधर्मोपदीपक शुद्धात्मस्वरूप संवेदक भरणशाली गोत्रे साह श्री मिट्ठूमल जी ने लिखाया है। श्री जिनायनमः । 2. संवत् 1750 वर्षे कार्तिक मासे शुक्ल पक्षे पंचमी तिथौ धर्म चर्चा लिखित श्रावण पुण्य प्रभावक देव गुरु भक्तिकारिक सुभासिरिंग गारकरा चेखा को साह चाहडमल्ल जी तत्पुत्ररत्न साह श्री लीलापति जी वाचनार्थ प० राजसी लिखायते श्री मोलित्रारण मध्ये लिखतम् । 3. संवत् 1753 वर्षे शाके मिति आषाढ सुदी दिने तिथौ शनिवारे पुष्यनक्षत्रे श्रीमान मूलत्रारण नगरे पं० श्री श्री खेमचन्द जी तत् शिष्य मुख्य प० श्रजैराज जी लिपिकृतम् । राखेचा गोत्रे सा० श्री चाहुडमल जी तत् पुत्र सा० श्री लीलापति जो ॥ 4 सवत् 1748 वर्षे शाके 1613 मगसिर मासे शुक्लपक्षे बीजतिथौ लिखिता जसेजा साह भैरवदास जी पठनाय शुभं । 10 ] . मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के आलोक मे
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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