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________________ साधु बतलाया है क्योंकि वे सदैव अध्यात्म ग्रन्थों का स्वाध्याय करने लगे थे । और क्योकि स्वय वर्धमान आत्मज्ञानियो के दास थे इसलिये वे उनके लिए सच्चे मुनि थे। उनकी सैली मे धरमदास, मिठ्ठ, सुखानन्द, नेमिदास, शान्तिदास आदि साधर्मी जन भी थे। इस शैली का नाम अध्यात्म सैली था। अध्यातम सैली मन लाय, सुखानन्द सुखदाइ जी। साह नेमिदास नवलखा ने सवत 1761 मे अपने पुत्र के पढने के लिये पंचास्तिकाय भाषा पाण्डे हेमराज कृत की प्रतिलिपि लघु वजीरपुर मे करवाई थी। प्रतिलिपिकार थे मोहन, जो जैन थे। प्रस्तुत पाण्डुलिपि मुलतान दिगम्बर जैन समाज जयपुर के शास्त्र भण्डार मे सुरक्षित है।' अध्यात्म शैली क दूसरे सदस्य मिठ्ठमल थे जो पहले बीकानेर के रहने वाले थे। उन्ही के पुत्र श्री सूरजमल के पठनार्थ सवत 1761 मे प्रवचनसार भाषा हेमराज कृत की प्रतिलिपि मुलतान नगर में की गयी थी । प्रतिलिपि करने वाले थे जिनधरमी कुलसेहरो, श्रीमालां सिगणार । वाणारसी बहोलिया, भविक जीव उद्धार ॥1॥ बाणारसी प्रसादतै, पायो ज्ञान विज्ञान । जग सब मिथ्या जाणकरि, पायी निज स्वथान ॥2॥ वाणारसी सुपसाय ले, लाधो भेद विज्ञान । परगृण आस्यां छेडिके, लीजे सिव की थान । दयासागर मुनि चूप वताई, बद्ध के मन साची आई। दयासागर साचो जती, समझे निज नय संग। अध्यातम वाचै सदा, तजो करम को रंग ॥3॥ पाहिराज साहिको सुतन, नवलख गोत्र उदार आतम ज्ञानी दास हैं वर्धमान सुखकार ॥4॥ धरमदास आतम घरम, साचो जग में दीठ । और धरम भरमी गिणे, आत्म अमोसम सीठ ॥5॥ 2. संवत् 1761 वर्षे मिती फागुण सुदी 3 तिथौ बहस्पतिवारे रेवती नक्षत्रे श्रीमन्मूल त्राण नगरे पं० श्री श्री वीरदास जी तत् शिष्य मुख्य पं० विमलदास लिपिकृतम् बीकानेर वास्तव्यं भडसाली गोत्रे सा० श्री मिठूमल जी तत्पुत्र सूरजमल जी पठनार्थ । • मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे [ १
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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