SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 784
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७०४ मोक्षशास5 · प्रश्न-कितनेक जगह शुभभावरूप समिति, गुप्ति, महाव्रतादिको भी चारित्र कहते हैं, इसका क्या कारण है ? उचर-वहाँ शुभभावरूप समिति आदिको व्यवहार चारित्र कहा है । व्यवहारका अर्थ है उपचार; छ? गुणस्थानमें जो वीतराग चारित्र होता है, उसके साथ महावतादि होते है ऐसा संबंध जानकर यह उपचार किया है। अर्थात् वह निमित्तकी अपेक्षासे यानि विकल्पके भेद बतानेके लिये कहा है, किन्तु यथार्थरीत्या तो निष्कषाय भाव ही चारित्र है, शुभराग चारित्र नहीं। प्रश्न-निश्चय मोक्षमार्ग तो निर्विकल्प है, उस समय सविकल्प (-सराग व्यवहार ) मोक्षमार्ग नही होता, तो फिर सविकल्प मोक्षमार्गको साधक कैसे कहा जा सकता है ? उचर-भूतनैगमनयकी अपेक्षासे उस सविकल्परूपको मोक्षमार्ग कहा है, अर्थात् भूतकालमें वे विकल्प (-रागमिश्रित विचार ) हुये थे, यद्यपि वे वर्तमानमे नहीं हैं तथापि 'यह वर्तमान है' ऐसा भूत नैगमनयकी अपेक्षासे गिना जा सकता है-कहा जा सकता है। इसीलिये उस नयकी अपेक्षासे सविकल्प मोक्षमार्गको साधक कहा है ऐसा समझना। (देखो परमात्म' प्रकाश पृष्ठ १४२ अध्याय २ गाथा १४ की संस्कृत टीका तथा इस ग्रन्थमें अन्तमें परिशिष्ट १) ६. सामायिकका स्वरूप प्रश्न-मोक्षके कारणभूत सामायिकका स्वरूप क्या है ? . उचर-जो सामायिक सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र स्वभाववाला परमार्थ ज्ञानका भवनमात्र ( परिणमन मात्र ) है एकाग्रता लक्षणवाली है वह सामायिक मोक्षके कारणभूत है। ( देखो समयसार गाथा १५४ टीका ) श्री नियमसार गाथा १२५ से १३३ मे यथार्थ सामायिकका स्वरूप दिया है वह इसप्रकार है
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy