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________________ दाशब्द आज इस चिर-प्रतीक्षित अन्थराज श्री "मोक्षशास्त्र" पर आध्यात्मिक दृष्टिसे की गई विस्तृत भाष्य समान टीकाको प्रकाशित होते देखकर हृदय बहुत आनन्दित हो रहा है। हमारे यहाँ दिगम्बर समाजमें इस ग्रन्थराजकी बहुत ही उत्कृष्ट महिमा है, सर्वदा पयूषण पर्वमें सर्व स्थानों में दस दिवसमें इसी ग्रन्थराजके दस अध्यायका अर्थ सहित वॉचन करनेकी पद्धति निरन्तर प्रचलित है तथा बहुत से खी पुरुषों को ऐसा नियम होता है कि नित्य प्रति इसका पूरा स्वाध्याय जरूर करना, इस प्रकार की पद्धति जो कि अभी रूढ़िमात्र ही रह गई है, अर्थ एवं भाव पर लक्ष्य किये बिना मात्र स्वाध्याय कल्याणकारी कदापि नहीं बन सकती, कदाचित् कषाय मंद करे तो किंचित् पुण्य हो सकता है लेकिन मोक्षमार्गमें सम्यकहित पुण्य का क्या मूल्य है, लेकिन यहाँ पर तो इतना ही समझना है कि समाजमें अभी भी इस ग्रन्थराजका कितना आदर है, इसकी और अनेक महान २ दिग्गज आचार्य श्रीमद् उमास्वामी आचार्यके बाद हुये जिन्होंने इस ग्रन्थराज मोक्षशास्त्र पर अनेक विस्तृत टीकायें श्री सर्वार्थसिद्धि, श्रीराजवार्तिक, श्री श्लोकवार्तिक श्रादि और हिन्दी भाषामें भी अर्थ प्रकाशिका आदि अनेक विस्तृत टीकायें रची जितनी बड़ी २ टीकाएं इस प्रन्थराज पर मिलती हैं उतनी अन्य किसी प्रन्थ पर नहीं मिलतीं, ऐसे ग्रन्थराज पर अध्यात्मरसरोचक हमारे श्री माननीय भाई श्री रामजीभाई माणेकचन्दजी दोशी एडवोकेट संपादक आत्म धर्म एवं प्रमुख श्री जैन स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट सोनगढ़ ने आध्यात्मिक दृष्टिकोण सहित से एक विस्तृत भाष्यरूप टीका गुजरातीमें तैयार की जिसमें अनेक अनेक प्रन्थोंमें इस विषय पर क्या कहा गया है उन सबके अक्षरशः उद्धरण साथ देने से यह टीका बहुत ही सुन्दर एवं उपयोगी बनगई, यह टीका गुजरातीमें वीर संवत् २४७३ के फागुन सुदी १ को १००० प्रति प्रकाशित हुई लेकिन सर्व समाजको यह टीका इतनी अधिक पसंद आई कि
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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