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________________ अनुवादक की ओर से इस युग के परम आध्यात्मिक सत पुरुष श्री कानजी स्वामी से जैन समाज का बहुभाग परिचित हो चुका है। अल्प काल में ही उनके द्वारा जो सत् साहित्य सेवा, आध्यात्मिकता का प्रचार और सद्भावोंका प्रसार हुआ है, वह गत् सौ वर्षों में भी शायद किसी अन्य जैन सन्त पुरुप मे हुश्रा हो। मुझे श्री कानजी स्वामी के निकट बैठकर कई बार उनके प्रवचन सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। वे 'आध्यात्मिक' और निश्चय व्यवहार जैसे शुष्क विषयों में भी ऐसी सरसता उत्पन्न कर देते हैं कि श्रोतागण घंटों क्या, महीनों तक निरन्तर उनके त्रिकाल प्रवचन सुनते रहते हैं। साथ ही श्रोताओंकी जिज्ञासात्मक रुचि बराबर बनी रहती है। उनके निकट बैठकर अनेक महानुभावों ने जान-लाभ लिया है, और समयसार, प्रवचनसार आदि कई ग्रन्थों का गुजराती अनुवाद किया है, जिनका राष्ट्र भाषानुवाद करने का सौभाग्य मुझे मिलता रहा है। गुजराती पाठकों में वह टीकाशास्त्र अत्यधिक लोकप्रिय सिद्ध हुआ है। मैंने स्वयं भी पर्युषण पर्व में 'ललितपुर' की जैन समाजके समक्ष उसी गुजराती भाष्यको २-३ बार हिन्दीमें पढकर विवेचन किया है, जो समाज को बहुत ही रुचिकर प्रतीत हुआ है । __ उसी भाष्य ग्रन्थका राष्ट्रभाषा हिन्दीमें अनुवाद करनेका मौभाग्य भी मुझे ही प्राप्त हुआ है, जो आपके करकमलोंमें प्रस्तुत है। मेरा विश्वास है कि सामान्य हिन्दी पाठक भी इस 'तत्त्वार्थ-विवेचन' का पठन-मनन करके तत्स्वार्थका रहस्यज्ञ बन सकता है। हिन्दी जगतमें इस प्रन्थका अधिकाधिक प्रचार होना चाहिये। जैनेन्द्र प्रेस, ललितपुर २५-७-५४ -परमेष्ठीदास जैन
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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