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________________ ५४८ मोक्षशास्त्र अर्थ-[सचित्त निक्षेपः] सचित्त पत्र आदिमें रखकर भोजन देना, [ सचित्तापिधानं ] सचित्त पत्र आदि से ढके हुये भोजन ग्रादिको देना [ परव्यपदेशः ] दूसरे दातारको वस्तुको देना [ मात्सर्य ] अनादरपूर्वक देना अथवा दूसरे दातारको ईपर्यापूर्वक देना और [ कालातिक्रमः ] योग्य कालका उल्लंघन करके देना-ये पांच अतिथिसविभाग शिक्षाव्रतके अतिचार है । इस तरह चार शिक्षाबतके अतिचार कहे ॥ ३६॥ अब सल्लेखनाके पांच अतिचार कहते हैं जीवितमरणाशंसामित्रानुरागसुखानुवन्धनिदा नानि ॥३७॥ अर्थ-[ जीविताशंसा ] सल्लेखना धारण करनेके वाद जीनेकी इच्छा करना, [ मरणाशंसा ] वेदनासे व्याकुल होकर शीघ्र मरनेकी इच्छा करना, [ मित्रानुरागः ] अनुरागके द्वारा मित्रोंका स्मरण करना [ सुखानुबंध ] पहले भोगे हुये सुखोंका स्मरण करना और [ निदानं ] निदान करना अर्थात् आगामी विषयभोगोंकी वांछा करना—ये पांच सल्लेखना व्रतके अतिचार हैं। __इस तरह श्रावकके अतिचारोंका वर्णन पूर्ण हुआ । ऊपर कहे अनुसार सम्यग्दर्शनके ५, बारह व्रतके ६०, और सल्लेखनाके ५ इस तरह कुल ७० प्रतीचारोंका त्याग करता है वही निर्दोष व्रती है ॥३७॥ दानका स्वरूप अनुग्रहार्थं स्वस्यातिसर्गो दानम् ॥ ३८॥ अर्थ-[ अनुग्रहार्थं ] अनुग्रह-उपकारके हेतुसे [ स्वस्यातिसर्गः] धन आदि अपनी वस्तुका त्याग करना सो [दानं ] दान है। टीका १-अनुग्रहका अर्थ है अपनी आत्माके अनुसार होनेवाला उपकार का लाभ है । अपनी आत्माको लाभ हो इस भावसे किया गया कोई कार्य
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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