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________________ पध्याय ७ सूत्र ३४-३५-३६ प्रोषधोपवास शिक्षाव्रत के पांच अतिचार अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितोत्सर्गादानसंस्तरोपक्रमणाना ५६७ दरस्मृत्यनुपस्थानानि ॥ ३४ ॥ अर्थ - [ श्रप्रत्यवेक्षिताप्रमाजितोत्सर्गादानसंस्तरोपक्रमरगानादरस्मृत्यनुपस्थानानि ] बिना देखी बिना शोघी जमीनमें मलमूत्रादिका क्षेपण करना, बिना देखे बिना शोघे पूजनके उपकरण ग्रहण करना, विना देखे विना शोघे, जमीनपर चटाई, वस्त्र आदि बिछाना, भूख आदि से व्याकुल हो आवश्यक धर्म कार्य उत्साहरहित होकर करना और आवश्यक धर्मकार्यों को भूल जाना - ये पांच प्रोषघोपवास शिक्षाव्रतके अतिचार हैं ॥ ३४ ॥ उपभोग परिभोग परिमाण शिक्षाव्रतके पाँच अतिचार सचित्तसंबंध मिश्राभिषवदुः पक्वाहाराः ॥ ३५ ॥ पर्थ - १ - सचित्त - जीववाले (कच्चे फल आदि) पदार्थ, २ - सचित्त पदार्थ के साथ सम्बन्धवाले पदार्थ, ३ -- सचित्त पदार्थसे मिले हुए पदार्थ, ४- श्रभिषव-गरिष्ठ पदार्थ, और ५ – दुःपक्व अर्थात् श्राघे पके या अधिक पके हुये या बुरी तरहसे पके पदार्थ - इनका श्राहार करना ये पाँच उपभोग परिभोग शिक्षाव्रतके प्रतिचार हैं । टीका भोग — जो वस्तु एक ही बार उपभोगमें लाई जाय सो भोग है, जैसे अन्न, इसे परिभोग भी कहा जाता है । उपभोग - जो वस्तु बारबार भोगी जाय उसे उपभोग कहते हैं जैसे वस्त्र आदि । अतिथिसंविभाग व्रतके पाँच अतिचार सचित्त निक्षेपापिधानपरव्यपदेशमात्सर्यकालातिक्रमाः ॥ ३६ ॥
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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