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________________ ५६६ मोक्षशास्त्र शब्द श्रादिसे मर्यादाके बाहर जीवोंको अपना अभिप्राय समझा देना, [ रूपानुपात: ] अपना रूप श्रादि दिखाकर मर्यादाके बाहरके जीवोंको इशारा करना और [ पुद्गलक्षेपाः ] मर्यादाके बाहर कंकर, पत्थर आदि फेंककर अपने कार्यका निर्वाह कर लेना ये पांच देशव्रतके अतिचार हैं ॥३१॥ अनर्थदंडवत पांच अतिचार कन्दर्प कौत्कुच्यमौखर्या ऽसमीक्ष्याधिकरणोपभोगपरिभोगानर्थक्यानि ॥३२॥ अर्थ - [ कंदर्प ] रागसे हास्य सहित अशिष्ट वचन बोलना, [ कौत्कुच्यं ] शरीरकी कुचेष्टा करके अशिष्टवचन बोलना, [ मौखयं ] घृष्टतापूर्वक जरूरतसे ज्यादा बोलना, [ असमीक्ष्याधिकरणं ] बिना प्रयोजन मन, वचन, कायकी प्रवृत्ति करना और [ उपभोगपरिभोगानर्थक्यं ] भोग उपभोगके पदार्थोंका जरूरतसे ज्यादा संग्रह करना - ये पांच अनर्थदंडव्रतके प्रतिचार हैं ||३२|| इस तरह तीन गुणव्रतके अतिचारोंका वर्णन किया, अब चार शिक्षावृत के प्रतिचारोंका वर्णन करते हैं । सामायिक शिक्षाव्रत के पांच अतिचार योगदुष्प्रणिधानानादरस्मृत्यनुपस्थानानि ॥३३॥ अर्थ - [ योगदुष्प्रणिधानं ] मन सम्बन्धी परिणामोंकी श्रन्यथा प्रवृत्ति करना, वचन संबंधी परिणामोंकी अन्यथा प्रवृत्ति करना, काम संबंधी परिणामोंकी अन्यथा प्रवृत्ति करना [ अनादरं ] सामायिकके प्रति उत्साह रहित होना और [ स्मृत्यनुपस्थानं ] एकाग्रताके अभावको लेकर सामायिक के पाठ आदि भूल जाना - ये पाँच सामायिक शिक्षावृतके अतिचार हैं ||३३|| नोट — सूत्रमें 'योग दुष्प्रणिधानं शब्द है उसे मन वचन श्रीर काय इन तीनोंमे लागू करके ये तीन प्रकारके तीन प्रतिचार गिने गये हैं ।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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