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________________ अध्याय ५ सूत्र ३६-४० ४४४ है। इस व्यवहार कालके अनंत समय हैं ऐसा अब इसके बादके सूत्रमें कहते हैं ।। ३६ ।। व्यवहार काल प्रमाण बताते हैं सोऽनन्तसमथः॥४०॥ अर्थ-[स] वह काल द्रव्य [ अनन्त समयः ] अनन्त समय वाला है। कालका पर्याय यह समय है । यद्यपि वर्तमानकाल एक समयमात्र ही है तथापि भूत-भविष्यको अपेक्षासे उसके अनन्त समय है। टीका (१) समय-मंदगतिसे गमन करनेवाले एक पुद्गल परमाणुको आकाशके एक प्रदेशसे दूसरे प्रदेशपर जानेमे जितना समय लगता है वह एक समय है । यह कालकी पर्याय होनेसे व्यवहारा है। आवलि, (-समयों के समूहसे ही जो हो ) घडी, घंटा आदि व्यवहारकाल है। व्यवहारकाल निश्चयकालकी पर्याय है । निश्चयकालद्रव्य-लोकाकाशके प्रत्येक प्रदेशपर रत्नोंकी राशि की तरह कालाणुके स्थित होनेका ३६ वें सूत्रकी टीकामे कहा है, वह प्रत्येक निश्वयकालद्रव्य है । उसका लक्षण वर्तना है। यह सूत्र २२ मे कहा जा चुका है। (२) एक समयमें अनन्त पदार्थोकी परिणति-पर्याय-जो अनन्त संख्यामे है। उसके एक कालाणुकी पर्याय निमित्त होती है, इस अपेक्षासे एक कालाणुको उपचारसे 'अनन्त' कहा जाता है । मुख्य अर्थात् निश्चयकालाणु द्रव्यको संख्या असंख्यात है। (३) समय यह सबसे छोटेसे छोटा काल है उसका विभाग नही हो सकता ।। ४० ।। इस तरह छह द्रव्योंका वर्णन पूर्ण हुआ । अव दो सूत्रो द्वारा गुण का और पर्यायका लक्षण बताकर यह अधिकार पूर्ण हो जायगा।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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