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________________ ४५० मोक्षशास्त्र गुण का लक्षण द्रव्याश्रया निगुणाः गुणाः॥४१॥ अर्थ-[ द्रव्याश्रयाः ] जो द्रव्यके आश्रयसे हों और [ निर्गुणाः ] स्वयं दूसरे गुणोंसे रहित हों [ गुणाः ] वे गुण हैं । टीका (१) ज्ञानगुण जीवद्रव्यके आश्रित रहता है तथा ज्ञानमें और कोई दूसरा गुण नही रहता । यदि उसमें गुण रहे तो वह गुण न रहकर गुणी (द्रव्य ) हो जाय किन्तु ऐसा नही होता ! 'पाश्रयाः' शब्द भेद अभेद दोनों बतलाता है । (२) प्रश्न-पर्याय भी द्रव्यके आश्रित रहती है और गुण रहित है इसलिये पर्यायमें भी गुणत्व आजायगा और इसीसे इस सूत्रमें अतिव्याप्ति दोष लगेगा। उत्तर-'द्रव्याश्रयाः' पद होनेसे जो नित्य द्रव्यके आश्रित रहता है, उसकी बात है, वह गुण है, पर्याय नही है। इसीलिये 'द्रव्याश्रयाः' पदसे पर्याय उसमें नही आती। पर्याय एक समयवर्ती ही है। __ कोई गुण दूसरे गुणके प्राश्रित नही है और एक गुण दूसरे गुण की पर्यायका कर्ता नहीं हो सकता है। (३) इस सूत्रका सिद्धांत प्रत्येक गुण अपने अपने द्रव्यके आश्रित रहता है इसलिये एक द्रव्यका गुण दूसरे द्रव्यका कुछ नहीं कर सकता, तथा दूसरे द्रव्यको प्रेरणा, असर या मदद नहीं कर सकता, पर द्रव्य निमित्तरूपसे होता है परन्तु एक द्रव्य पर द्रव्यमें अकिंचित्कर है ( समयसार गाथा २६७ की टीका ) प्रेरणा, सहाय, मदद, उपकार आदि का कथन उपचारमात्र है अर्थात् निमित्तका मात्र ज्ञान कराने के लिये है ।। ४१ ॥ पर्याय का लक्षण तद्भावः परिणामः॥४२॥
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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