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________________ ४४८ मोक्षशास्त्र संख्या, लक्षण और प्रयोजन की अपेक्षासे द्रव्य, गुण और पर्यायमै भेद है परन्तु प्रदेशसे अभेद है; ऐसा वस्तुका भेदाभेद स्वरूप समझना । (६) सूत्र में 'वत्' शब्दका प्रयोग किया है वह कथंचित् भेदाभेदरूप सूचित करता है। (७) जो गुणके द्वारा यह बतलावे कि 'एक द्रव्य दूसरे द्रव्यसे द्रव्यान्तर है' उसे विशेष गुण कहते हैं । उसके द्वारा उस द्रव्यका विधान किया जाता है । यदि ऐसा न हो तो द्रव्योंकी संकरता-एकताका प्रसंग हो और एक द्रव्य बदलकर दूसरा हो जाय तो व्यतिकर दोषका प्रसंग होगा। इसलिये इन दोषोंसे रहित वस्तुका स्वरूप जैसाका तैसा समझना ॥३८॥ काल भी द्रव्य है कालश्च ।। ३६ ॥ अर्थः-[ कालः ] काल [च ] भी द्रव्य है । टीका (१) 'च' का अन्वय इस अध्यायके दूसरे सूत्र 'द्रव्यारिण' के साथ (२) काल उत्पाद-व्यय-ध्रुव तथा गुण-पर्याय सहित है, इसलिये वह द्रव्य है। (३) काल द्रव्योंकी संख्या असंख्यात है। वे रत्नों की राशि की तरह एक दूसरेसे पृथक् लोकालोकके समस्त प्रदेशों पर स्थित हैं । वह प्रत्येक कालाणु जड़, एक प्रदेशी और प्रमूर्तिक है। उनमें स्पर्श गुण नहीं है इसलिये एक दूसरेके साथ मिलकर स्कंध रूप नहीं होता । कालमें मुख्य रूपसे या गौणरूपसे प्रदेश-समूहकी कल्पना नहीं हो सकती, इसलिये उसे अकाय भी कहते है । वह निष्क्रिय है अर्थात् एक प्रदेशसे दूसरे प्रदेशमें नही जाता। (४) सूत्र २२ में वर्तना मुख्य कालका लक्षण कहा है और उसी सूत्र में व्यवहार कालका लक्षण परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व कहा
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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