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________________ अध्याय ५ सूत्र ३७-३८ '४४७ एक स्कंध हो जाता है अर्थात् अधिक गुणधारक परमाणुकी जातिका और उतने गुणवाला स्कंध होता है ॥ ३७ ॥ द्रव्य का दूसरा लक्षण गुणपर्ययवत् द्रव्यम् ॥ ३८॥ अर्थ-[ गुणपर्ययवत् ] गुण पर्यायवाला [ व्रव्यम् ] द्रव्य है । टीका (१) गुण-द्रव्यकी अनेक पर्याय बदलने पर भी जो द्रव्यसे कभी पृथक् नही हो, निरन्तर द्रव्यके साथ सहभावी रहे वह गुण कहलाता है। (२) जो द्रव्यके पूरे हिस्से में तथा उसकी सभी हालतमें रहे उसे गुण कहते हैं । (जैन सिद्धान्त प्रवेशिका प्रश्न ११३ ) (३) जो द्रव्यमें शक्तिकी अपेक्षासे भेद किया जावे वह गुण शब्दका अर्थ है(तत्त्वार्थसारअध्याय ३, गाथा | पृष्ठ १३१) सूत्रकार गुणको व्याख्या ४१ वें सूत्र में देंगे। (२) पर्याय-१-क्रमसे होनेवाली वस्तुको गुणकी अवस्थाको पर्याय कहते हैं; २-गुणके विकारको ( विशेष कार्यको ) पर्याय कहते हैं; (जैन सिद्धान्त प्रवेशिका प्रश्न १४८ ) ३-द्रव्यमें जो विक्रिया हो अथवा जो अवस्था बदले वह पर्याय कहलाती है। (देखो तत्त्वार्थसार अध्याय ३ गाथा ६ पृष्ठ १३१) सूत्रकार पर्यायकी व्याख्या ४२ वे सूत्र में देंगे। (३) पहले सूत्र २६-३० में कहे हुए लक्षणसे यह लक्षण पृथक नही है, शब्द भेद है, किन्तु भावभेद नही । पर्यायसे उत्पाद-व्यय की और गुणसे ध्रौव्यकी प्रतीति हो जाती है। (४) गुणको अन्वय, सहवर्ती पर्याय या अक्रमवर्ती पर्याय भी कहा जाता है तथा पर्यायको व्यतिरेकी अथवा क्रमवर्ती कहा जाता है । द्रव्यका स्वभाव गुण-पर्यायरूप है, ऐसा सूत्र में कहकर द्रव्यका अनेकांतत्व सिद्ध किया । (५) द्रव्य, गुण और पर्याय वस्तुरूपसे अभेद-अभिन्न है । नाम,
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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