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________________ मोक्षशास्त्र -३६, ३८ में दिया है। उनमें जीवका एक दूसरेका सम्बन्ध सूत्र २० में बताया । जीवका पुद्गलके साथका सम्बन्ध सूत्र १६, २० में बताया और पुद्गलका परस्परका सम्बन्ध बाकीके सूत्रोंमें बताया गया है। (१४) 'सत्' लक्षण कहनेसे यह सिद्ध हुआ कि स्व की अपेक्षासे 'द्रव्य सत्' है । इसका यह अर्थ हुआ कि वह स्वरूपसे है पर रूपसे नही। 'अस्तित्व' प्रगट रूपसे और नास्तित्व' गर्भित रूपसे (इस सूत्र में) कहकर यह बतलाया है कि प्रत्येक द्रव्य स्वयं स्वसे है और पर रूपसे न होनेसे एक द्रव्य अपना सब कुछ कर सकता है, किंतु दूसरे द्रव्यका कभी कुछ नही कर सकता । इस सिद्धान्तका नाम 'अनेकांत' है और वह इस अध्यायके ३२ वें सूत्रमे बतलाया गया है ॥ २६ ॥ अब सत्का लक्षण बताते हैं उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्त सत् ॥३०॥ अर्थः-[ उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं ] जो उत्पाद व्यय-ध्रौव्य सहित हो [ सत् ] सो सत् है। टीका (१) जगत्में सत्के संबंधमें कई असत् मान्यतायें चल रही हैं। कोई 'सत्' को सर्वथा कूटस्थ-जो कभी न बदले ऐसा मानते है; कोई ऐसा कहते हैं कि सत् ज्ञान गोचर नही है, इसलिए 'सत्' का यथार्थ त्रिकाली अबाधित स्वरूप इस सूत्रमे कहा है। (२) प्रत्येक वस्तुका स्वरूप 'स्थायी रहते हुये बदलता है' उसे इंग्लिश में Permanancy with a change (बदलनेके साथ स्थायित्व); कहा है । उसे दूसरी तरह यों भी कहते हैं कि-No substance is destroyed, every substance changes its form. (कोई वस्तु नाश नही होती, प्रत्येक वस्तु अपनी अवस्था बदलती है )। (३) उत्पाद-चेतन अथवा अचेतन द्रव्यमें नवीन अवस्थाका प्रगट होना सो उत्पाद है । प्रत्येक उत्पाद होने पर पूर्वकालसे चला आया जो स्वभाव या स्वजाति है वह कभी छूट नही सकती।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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