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________________ अध्याय ५ सूत्र २४ ४२१ स्थूल - दो तरहका है (१) अन्त्य, (२) आपेक्षिक | जो जगद्व्यापी महास्कंध है सो अन्त्य स्थूल है, उससे बड़ा दूसरा कोई स्कंध नहीं है । 'बेर' आँवला आदि आपेक्षिक स्थूल हैं । संस्थान - प्राकृतिको संस्थान कहते हैं उसके दो भेद हैं ( १ ) इत्थं लक्षण संस्थान और (२) अनित्थंलक्षण संस्थान । उसमे गोल, त्रिकोण, चोरस, लम्बा, चौड़ा, परिमंडल ये इत्थलक्षण संस्थान है । बादल आदि जिसकी कोई आकृति नही वह अनित्थंलक्षण संस्थान है । भेद-छह तरहका है । (१) उत्कर, (२) चूर्ण, (३) खंड, (४) चूरिका, (५) प्रतर और (६) अनुचटन । आरे आदिसे लकड़ी श्रादिका विदारण करना सो उत्कर है। जो, गेहूँ, बाजरा आदिका आटा चूर्ण है । घडे आदिके टुकडे खण्ड हैं । उड़द, मूग, चना, चोला आदि दालको चूरिका कहते है । तप्त्यमान लोहेको घन इत्यादिसे पीटने पर जो स्फुलिंग ( चिन्गारियाँ ) निकलते हैं उसे अनुचटन कहते हैं । अन्धकार - जी प्रकाशका विरोधी है सो अन्धकार है । छाया-प्रकाश (उजेले) को ढकनेवाली छाया है । वह दो प्रकारकी है ( १ ) तद्वर्णपरिणति (२) प्रतिबिम्बस्वरूप । रंगोन काँचमेसे देखने पर जैसा काँचका रंग हो वैसा ही दिखाई देता है यह तदुद्वर्णपरिणति कह - लाती है । और दर्पण, फोटो आदिमे जो प्रतिबिंब देखा जाता उसे प्रतिबिम्ब स्वरूप कहते है । आतप - सूर्य विमानके द्वारा जो उत्तम प्रकाश होता है उसे श्रातप कहते हैं । उद्योत - चन्द्रमा, चन्द्रकान्त भरिण, दीपक श्रादिके प्रकाशको उद्योत कहते है । सूत्रमें जो 'च' शब्द कहा है उसके द्वारा प्रेरणा, श्रभिघात ( मारना) आदि जो पुद्गलके विकार है उनका समावेश किया गया है ।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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