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________________ अध्याय ५ सूत्र २३-२४ ४१६ उत्तर-मूल सत्ताकी अपेक्षासे ये भेद नहीं कहे गये किन्तु परस्पर के स्थूल अन्तरकी अपेक्षासे कहे हैं। रसादिके सम्बन्धमे यही बात समझनी चाहिए। रंगादिको नियत संख्या नही है । (तत्त्वार्थ सार पृष्ठ १५८) अव पुद्गलकी पर्याय बतलाते हैं शब्दबन्धसौक्ष्म्यस्थौल्यसंस्थानभेदतमश्छायातपोद्योत वन्तश्च ॥ २४ ॥ अर्थः-उक्त लक्षणवाले पुद्गल [शब्द बंध सौम्य स्थौल्य संस्थान भेद तमश्छायातपोद्योतवंतः च ] शब्द, बंध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान (प्राकार), भेद, अंधकार, छाया, आतप और उद्योतादिवाले होते हैं, अर्थात् ये भी पुद्गलकी पर्यायें हैं। टीका (१) इन अवस्थाओंमेंसे कितनी तो परमाणु और स्कंध दोनोमे होती है और कई स्कंधमें ही होती हैं। (२) शब्द दो तरहका है-१-भाषात्मक और २-अभाषात्मक । इनमें से भाषात्मक दो तरहका है-१-अक्षरात्मक और २-अनक्षरात्मक । उनमे अक्षरात्मक भाषा संस्कृत और देशभाषारूप है। यह दोनों शास्त्रोंको प्रगट - करनेवाली और मनुष्यके व्यवहारका कारण है । अनक्षरात्मक भाषा दो इन्द्रियसे लेकर चार इन्द्रियवालो तथा कितनेक पंचेन्द्रिय जीवोके होती है और अतिशय रूप ज्ञानको प्रकाशित करनेकी कारण केवली भगवानको दिव्य ध्वनि-ये सभी अनक्षरात्मक भाषा हैं । यह पुरुष निमित्तक है, इसलिए प्रायोगिक है। __ अभाषात्मक शब्द भी दो भेद रूप हैं । एक प्रायोगिक दूसरा वैससिक। जिस शब्दके उत्पन्न होनेमे पुरुष निमित्त हो वह प्रायोगिक है और जो पुरुष को बिना अपेक्षाके स्वभावरूप उत्पन्न हो वह वैनसिक है, जैसे मेघ गर्जनादि । प्रायोगिक भाषा चार तरहकी है-१-तत २-वितत ३-धन और ४-सुषिर । जो चमड़ेके ढोल, नगाड़े आदिसे उत्पन्न हो वह तत
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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