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________________ ४१८ मोक्षशास्त्र वर्ण गुणकी पाँच पर्याय है-१-काला, २-नीला, ३-पीला, ४लाल और ५-सफेद । इन पांचोंमेंसे परमाणुके एक कालमें एक वर्ण पर्याय प्रगट होती है। ___ इस तरह चार गुणके कुल २० भेद-पर्याय हैं। प्रत्येक पर्यायके दो, तीन, चारसे लेकर संख्यात, असंख्यात और अनन्त भेद होते है। (४) कोई कहता है कि 'पृथ्वी, जल, वायु तथा अग्निके परमाणुओं में जाति भेद है' किंतु यह कथन यथार्थ नहीं है । पुदल सब एक जातिका है। चारों गुण प्रत्येकमें होते हैं और पृथ्वी आदि अनेकरूपसे उसका परिणाम है । पाषाण और लकड़ीरूपसे जो पृथ्वी है वह अग्निरूपसे परिणमन करती है । अग्नि, काजल, राखादि पृथ्वीरूपमें परिणमते हैं । चन्द्रकांत मरिण पृथ्वी है उसे चन्द्रमाके सामने रखने पर वह जलरूपमें परिणमन करती है । जल, मोती, नमक आदि पृथ्वीरूपसे उत्पन्न होते हैं । जो नामका अनाज (जो पृथ्वीकी जातिका है) खानेसे वायु उत्पन्न होती है, क्योंकि पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु पुद्गल द्रव्यके ही विकार है (पर्याय है)। (५) प्रश्न-इस अध्यायके ५ वें सूत्र में पुद्गलका लक्षण रूपित्व कहा है तथापि इस सूत्रमे पुद्गलका लक्षण क्यो कहा ? उत्तर-इस अध्यायके चौथे सूत्रमे द्रव्योंकी विशेषता बतानेके लिये नित्य, अवस्थित और अरूपी कहा था और उसमें पुद्गलोंको अमूर्तिकत्व प्राप्त होता था, उसके निराकरणके लिए पाँचवाँ सूत्र कहा था और यह सूत्र तो पुद्गलोका स्वरूप बतानेके लिए कहा है। (६) इस अध्यायके पांचवें सूत्रको टीका यहां पढ़नी चाहिए। (७) विदारणादि कारणसे जो टूट फूट होती है तथा संयोगके कारणसे मिलना होता है-उसे पुद्गलके स्वरूपको जाननेवाले सर्वज्ञदेव पुद्गल कहते हैं। (देखो तत्त्वार्थसार अध्याय ३ गाथा ५५ ) (८) प्रश्न-हरा रंग कुछ रंगोंके मेलसे बनता है, इसलिए रंग के जो पांच मेद बताये हैं वे मूल भेद से रह सकते हैं ?
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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