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________________ ३२२ मोक्षशास्त्र टीका १. आर्यों के दो भेद हैं-ऋद्धिप्राप्त आर्य और अनऋद्धिप्राप्त आर्य। ऋद्धिप्राप्तमार्य=जिन आर्य जीवोंको विशेष शक्ति प्राप्त हो । अनऋद्धिप्राप्तआर्य=जिन आर्य जीवोंको विशेप शक्ति प्राप्त नहीं हो। ऋद्धिप्राप्त आर्य २. ऋद्धिप्राप्तआर्य के आठ भेद हैं-(१) बुद्धि, (२) क्रिया, ( ३ ) विक्रिया, (४) तप, (५) बल, (६ ) औषध, (७) रस, और (८) क्षेत्र इन आठ ऋद्धियोंका स्वरूप कहते है। ३. बुद्धिऋद्धि-बुद्धिऋद्धिके अठारह भेद हैं-(१) केवलज्ञान, (२) अवधिज्ञान, (३) मनःपर्ययज्ञान, (४) बीजबुद्धि, (५) कोष्टबुद्धि, (६) पदानुसारिणी, (७) सभिन्न श्रोतृत्व, (८) दूरास्वादनसमर्थता, ( 8 ) दूरदर्शनसमर्थता, ( १० ) दूरस्पर्शनसमर्थता, (११) दूरघ्रारणसमर्थता, (१२) दूरश्रोतृसमर्थता, ( १३ ) दशपूर्वित्व, (१४ ) चतुर्दशपूवित्व, ( १५) अष्टांगनिमित्तता, ( १६ ) प्रज्ञाश्रमणत्व, ( १७) प्रत्येकवुद्धता, और ( १८ ) वादीत्व इनका स्वरूप निम्नप्रकार है (१-३) केवलज्ञान,-अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान इन तीनोंका स्वरूप अध्याय १, सूत्र २१ से २५ तथा २७ से ३० तक में आ गया है। (४) वीजवुद्धि-एक वीजपदके ( मूलपदके ) ग्रहण करनेसे अनेकपद, और अनेक अर्थोका जानना सो वीजबुद्धि है। (५) कोएबुद्धि-जैसे कोठारमें रखे हुए धान्य, वीज इत्यादि बहुत समय तक जैसके तैसे बने रहते हैं घटते बढ़ते नही है परस्परमें
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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