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________________ अध्याय ३ सूत्र ३४-३५-३६ ३२१ है । पूर्वार्धमें सारी रचना धातकी खडके समान है और जम्बूद्वीपसे दूनी है । इस द्वीपके उत्तरकुरुप्रान्तमे एक पुष्कर (-कमल ) है। इसलिये उसे पुष्करवरद्वीप कहते है ॥ ३४ ॥ मनुष्य क्षेत्रप्राङ्मानुषोत्तरान्मनुष्याः ॥ ३५ ॥ अर्थ-मानुषोत्तर पर्वत तक अर्थात् अढ़ाई द्वीपमे ही मनुष्य होते है,-मानुषोत्तर पर्वतसे परे ऋद्धिधारी मुनि या विद्याधर भी नही जा सकते। टीका १. जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, धातकीखण्ड, कालोदधि और पुष्कराध इतना क्षेत्र अढाई द्वीप है, इसका विस्तार ४५ लाख योजन है। २. केवल समुद्घात और मारणांतिक समुद्घातके प्रसंगके अतिरिक्त मनुष्यके प्रात्मप्रदेश ढाई द्वीपके बाहर नहीं जा सकते । ३ आगे चलकर आठवाँ नन्दीश्वर द्वीप है उसकी चारों दिशामें चार अंजनगिरि पर्वत, सोलह दधिमुखपर्वत और बत्तीस रतिकर पर्वत है। उनके ऊपर मध्यभागमें जिन मदिर हैं। नन्दीश्वर द्वीपमे इसप्रकार बावन जिन मदिर हैं। बारहवाँ कुण्डलवर द्वीप है उसमे चार दिशाके मिलाकर चार जिनमंदिर हैं । तेरहवां रुचकवर नामका द्वीप है उसके वीचमे रुचकनामका पर्वत है, उस पर्वतके ऊपर चारो दिशामे चार जिन मन्दिर है वहाँ पर देव जिन पूजनके लिये जाते हैं इस पर्वतके ऊपर अनेक कूट हैं उनमे अनेक देवियोके निवास है । वे देवियां तीर्थंकरप्रभुके गर्भ और जन्मकल्याणकमे प्रभुको माताकी अनेक प्रकारसे सेवा करती हैं ॥ ३५ ॥ मनुष्योंके भेद आर्या म्लेच्छाश्च ॥ ३६ ॥ अर्थ-आर्य और म्लेच्छके भेदसे मनुष्य दो प्रकार के हैं। ४१
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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