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________________ अध्याय २ सूत्र ३६-३७ १२७३ इसलिये उदार कहलाता है, सूक्ष्म निगोदियोका शरीर इन्द्रियोंके द्वारा न तो दिखाई देता है न मुड़ता है और न काटनेसे कटता है, फिर भी वह स्थूल है, क्योंकि दूसरे शरीर उससे क्रमशः सूक्ष्म है [ देखो इसके बादका सूत्र ] वैक्रियिक शरीर-जिसमें हलके भारी तथा अनेक प्रकारके रूप वनानेकी शक्ति हो उसे वैक्रियिक शरीर कहते है वह देव और नारकियोंके ही होता है। नोट-यह बात ध्यान रखना चाहिये कि प्रौदारिक शरीरवाले जीव के ऋद्धिके कारण जो विक्रिया होती है वह औदारिक शरीरका ही प्रकार है। आहारकशरीर-सूक्ष्म पदार्थोके निर्णयके लिये अथवा सयमकी रक्षा इत्यादिके लिये छठवें गुणस्थानवर्ती मुनिके मस्तकसे जो एक हाथका पुत्तला निकलता है, उसे आहारक शरीर कहते हैं । ( तत्त्वोमै कोई शका होने पर केवली अथवा श्रु तकेवलीके पास जानेके लिए ऐसे मुनिके मस्तकसे एक हाथका पुतला निकलता है उसे आहारक शरीर कहते हैं।) तैजस शरीर-~औदारिक, वैक्रियिक और आहारक इन तीन शरीरोको कान्ति देनेवाले तेजस वगंणासे बने हुए शरीरको तैजस शरीर कहते हैं। कार्मण शरीर-ज्ञानावरणादि आठ कर्मोके समूहको कार्मण शरीर कहते है। नोट-पहिले तीन शरार माहार वर्गणा से बनते हैं। शरीरोंकी सूक्ष्मताका वर्णन परं परं सूक्ष्मम् ॥ ३७॥ अर्थ-पहिले कहे हुए शरीरोकी अपेक्षा [परं परं] आगे आगेके शरीर [ सूक्ष्मम् ] सूक्ष्म सूक्ष्म होते हैं अर्थात् औदारिककी अपेक्षा वैक्रियिक सूक्ष्म, वैक्रियिककी अपेक्षा आहारक सूक्ष्म, आहारककी अपेक्षा तेजस सूक्ष्म और तंजसकी अपेक्षासे कार्मण शरीर सूक्ष्म होता है ॥ ३७॥ पहिले पहिले शरीरकी अपेक्षा आगेके शरीरोंके प्रदेश थोड़े होंगे ऐसी विरुद्ध मान्यता दूर करने के लिये सूत्र कहते हैं ।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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