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________________ २७२ मोक्षशास्त्र है, जैसे कोई जीव शय्यासे सोकर जागता है उसीप्रकार आनन्द सहित वह जीव बैठा होता है । यह देवोंका उपपाद जन्म है । २ - नारकी जीव बिलोंमें उत्पन्न होते हैं मधुमक्खी के छत्तेकी भाँति अधा मुख किये हुये इत्यादि आकारके विविध मुखवाले उत्पत्तिस्थान हैं उनमें नारकी जीव उत्पन्न होते है और वे उल्टा सिर ऊपर पैर किये हुए अनेक कष्ट कर वेदनानोंसे निकलकर विलाप करते हुए धरती पर गिरते हैं यह नारकीका उपपादजन्म है || ३४ ॥ सम्मूर्च्छन जन्म किसके होता है ? शेषाणां सम्मूर्च्छनम् ॥ ३५ ॥ अर्थ - [ शेषाणां ] गर्भ और उपपाद जन्मवाले जीवोंके अतिरिक्त शेष जीवोंके [सम्मूर्च्छनम् ] सम्मूर्च्छन जन्म ही होता है अर्थात् सम्मूर्च्छन जन्म शेष जीवोके ही होता है । टीका एकेन्द्रियसे असैनी चतुरिन्द्रिय जीवोंके नियमसे समूच्छंन जन्म होता है और असैनी तथा सेनी पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके गर्भ और सम्मूर्च्छन दोनों प्रकारके जन्म होते हैं अर्थात् कुछ गर्भज होते हैं और कुछ सम्मूर्च्छन होते हैं । लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्योके भी सम्मूर्च्छनजन्म होता है ॥ ३५ ॥ शरीर के नाम तथा भेद औदारिकवैक्रियिकाहार कतै जसकार्मणानि शरीराणि ॥ ३६ ॥ अर्थ - [ श्रदारिक- वैक्रियिक श्राहारक तेजस कार्मणाणि ] श्रोदारिक वैक्रियिक, ग्राहारक, तेजस, और कार्मरण [ शरीराणि ] यह पाँच शरीर हैं । औदारिक शरीर मनुष्य और तिर्यंचोंका शरीर जो कि सड़ता है गलता है तथा भरता है वह-प्रदारिक शरीर है । यह शरीर स्थूल होता है
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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