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________________ २३६ मोक्षशास्त्र लक्षण दिया है जो सब जीवों पर लागू होता है । (तत्त्वार्थसार पृष्ठ ५४ ) जैसे सोने चाँदीका एक पिंड होने पर भी उसमें सोना अपने पीले पन आदि लक्षणसे और चॉदी अपने शुक्लादि लक्षणसे दोनों अलग २ है, ऐसा उनका भेद जाना जा सकता है, इसीप्रकार जीव श्रोर कर्म - नोकर्म ( शरीर ) एक क्षेत्रमें होने पर भी जीव अपने उपयोग लक्षणके द्वारा कर्म - नोकर्मसे अलग है और द्रव्यकर्म - नोकर्म अपने स्पर्शादि लक्षणके द्वारा जीवसे अलग है, इसप्रकार उनका भेद प्रत्यक्ष जाना जा सकता है । जीव और पुद्गलका अनादिकालसे एक क्षेत्रावगाहरूप सम्बन्ध है, इसलिये अज्ञानदशा मे वे दोनों एकरूप भासित होते हैं । जीव श्रौर पुद्गल एक प्रकाश क्षेत्रमे होने पर भी यदि उनके यथार्थ लक्षणोंसे निर्णय किये जाँय तो वे दोनों भिन्न हैं ऐसा ज्ञान होता है । बहुतसे मिले हुए पदार्थों में से किसी एक पदार्थको अलग करनेवाले हेतुको लक्षण कहते हैं । अनन्त परमाणुओं से बना हुआ शरीर और जीव इसप्रकार बहुतसे मिले हुए पदार्थ हैं उनमें अनन्त पुद्गल हैं और एक जीव है । उसे ज्ञानमें अलग करनेके लिये यहाँ जीवका लक्षण बताया गया है । 'जीवका लक्षण उपयोग है' इसप्रकार यहाँ कहा है । प्रश्न – उपयोगका अर्थ क्या है ? उत्तर—चैतन्य प्रात्माका स्वभाव है, उस चैतन्य स्वभावको प्रर्नुसरण करनेवाले आत्माके परिणामको उपयोग कहते हैं । उपयोग जीवका अबाधित लक्षण है । आठवें सूत्रका सिद्धान्त मैं शरीरादिके कार्य कर सकता हूँ, और मैं उन्हें हिला - बुला सकती हूँ, ऐसा जो जीव मानते है वे चेतन और जड़ द्रव्यको एकरूप मानते है । उनकी इस मिथ्या मान्यताको छुड़ानेके लिये और जीवद्रव्य जड़से सर्वथा भिन्न है यह बतानेके लिये इस सूत्रमें जीवका असाधारण लक्षण उपयोग है - ऐसा बताया गया है । नित्य उपयोग लक्षणवाला जीवद्रव्य कभी पुद्गल द्रव्यरूप ( शरीरा
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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