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________________ अध्याय २ सूत्र ८ २३५ ५. पाँच भावों में से कौनसे भाव बन्धरूप हैं और कौनसे नहीं १ (१) इन पाँच भावोमेंसे एक औदयिकभाव ( मोहके साथका संयुक्तभाव ) बन्धरूप है । जब जीव मोहभाव करता है तब कर्मका उदय उपचारसे बन्धका कारण कहलाता है । द्रव्य मोहका उदय होने पर भी यदि जीव मोहभावरूपसे परिणमित न हो तो बन्ध न हो और तब वही जड़कर्मकी निर्जरा कहलाये । (२) जिसमें पुण्य-पाप, दान, पूजा, व्रतादि भावोंका समावेश होता है ऐसे आश्रव और बन्ध दो प्रोदयिकभाव हैं; संवर और निर्जरा मोहके औपशमिक, क्षायोपशमिक और क्षायिकभाव हैं; वे शुद्धता के अंश होनेसे बन्धरूप नही है; और मोक्ष क्षायिकभाव है, वह सर्वथा पूर्ण पवित्र पर्याय है इसलिये वह भी बन्धरूप नही है । (३) शुद्ध त्रैकालिक पारिणामिकभाव बन्ध और मोक्षसे निर्पेक्ष है ॥ ७ ॥ जीवका लक्षण उपयोगो लक्षणम् ॥ ८ ॥ अर्थ – [ लक्षरणम् ] जीवका लक्षण [ उपयोगः ] उपयोग है । टीका लक्षण-- - बहुतसे मिले हुए पदार्थोंमेंसे किसी एक पदार्थको अलग करनेवाले हेतु ( साधन ) को लक्षण कहते हैं । उपयोग – चैतन्यगुणके साथ सम्बन्ध रखनेवाले जीवके परिणाम को उपयोग कहते हैं । उपयोगको 'ज्ञान-दर्शन' भी कहते हैं वह सभी जीवोमे होता है श्रीर जीवके अतिरिक्त अन्य किसी द्रव्यमे नही होता, इसलिये उसे जीवका असाधारण गुरण अथवा लक्षण कहते हैं । और वह सद्भुत ( आत्मभूत ) लक्षण है इसलिये सब जीवोमे सदा होता है । इस सूत्र में ऐसा सामान्य
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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