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________________ श्रध्याय २ सूत्र १ २१६ उत्तर— नहीं, यह ठीक नही है । यद्यपि सामान्यरूपसे ( द्रव्यार्थिक नयसे अथवा उत्सर्ग कथनसे ) पारिणामिकभाव शुद्ध है तथापि विशेषरूप से ( पर्यायार्थिकनयसे अथवा अपवाद कथनसे ) अशुद्ध पारिणामिकभाव भी है । इसलिये 'जीवभव्याभव्यत्वानि च' इस ( सातवें सूत्र ) से पारिणामिकभावको जीवत्व, भव्यत्व और अभव्यत्व-तीन प्रकारका कहा है, उनमेसे जो शुद्ध चैतन्यरूप जीवत्व है वह अविनाशी शुद्ध द्रव्याश्रित है, इसलिये उसे शुद्ध द्रव्याश्रित नामका शुद्ध पारिणा। मिकभाव समझना चाहिए। और जो दश प्रकारके द्रव्य - प्रारणोसे पहिचाना जाता है ऐसा जीवत्व और मोक्षमार्ग की योग्यता - अयोग्यतासे भव्यत्व, अभव्यत्व यह तीन प्रकार पर्यायाश्रित है इसलिये उन्हें पर्यायार्थिक नामके अशुद्ध पारिणामिकभाव समझना चाहिये । (४) प्रश्न — इन तीन भावोंकी अशुद्धता किस अपेक्षासे है ? उचर- - यह अशुद्ध पारिणामिकभाव व्यवहारनयसे सांसारिक जीवों में है फिर भी " सव्वे सुद्धा हु सुद्धरणया" अर्थात् सब जीव शुद्धनयसे शुद्ध है, इसलिये यह तीनो भाव शुद्ध निश्चयनयकी अपेक्षासे किसी जीवको नही हैं, संसारी जीवोमें पर्यायकी अपेक्षा अशुद्धत्व है । [ भव्य जीवमे अभव्यत्व गुण नही है और अभव्य जीवमे भव्यत्व गुण नही है तथा वे दोनों गुरण जीवके अनुजीवी गुण है, तथा वे श्रद्धा गुरणकी पर्याय नही, देखो "अनुजीवीगुरण" जैन सि० प्रवेशिका । ] - प्रश्न- - इन शुद्ध और अशुद्ध पारिणामिकभावोंमेंसे कौनसा भाव ध्यानके समय ध्येयरूप है ? उचर- - द्रव्यरूप शुद्ध पारिणामिकभाव अविनाशी है इसलिये वह ध्येयरूप है, अर्थात् वह त्रैकालिक शुद्ध पारिणामिकभावके लक्षसे शुद्ध अवस्थाको प्रगट करता है । [ बृहत् द्रव्यसंग्रह पृष्ठ ३४-३५ ] ४. औपशमिकभाव कब होता है ? अध्याय १ सूत्र ३२ मे कहा गया है कि जीवके सत् और असत्के विवेकसे रहित जो दशा है सो उन्मत्त जैसी है । मिथ्या अभिप्रायसे अपनी
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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