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________________ २१८ मोक्षशास्त्र यह औपशमिकभाव सिद्ध करता है। (८) अप्रतिहत पुरुषार्थ से पारिणामिकभावका अच्छी तरह आश्रय बढाने पर विकारका नाश हो सकता है ऐसा क्षायिकभाव सिद्ध करता है। (8) यद्यपि कर्मोके साथका संबंध प्रवाहसे अनादिकालीन है तथापि प्रतिसमय पुराने कर्म जाते है और नये कर्मोका संबंध होता रहता है, इस अपेक्षासे कर्मोके साथका वह सम्बन्ध सर्वथा दूर हो जाता है, यह क्षायिकभाव सिद्ध करता है। (१०) कोई निमित्त विकार नहीं करता किन्तु जीव स्वयं निमित्ताधीन होकर विकार करता है । जब जीव पारिणामिक भावरूप अपने द्रव्य स्वभाव सन्मुख हो करके स्वाधीनताको प्रगट करता है तब अशुद्धता दूर होकर शुद्धता प्रगट होती है, ऐसा औपशमिकभाव, साधकदशाका क्षायोपशमिकभाव और क्षायिकभाव तीनों सिद्ध करते हैं। ३. पाँच भावोंके सम्बन्धमें कुछ प्रश्नोत्तर (१) प्रश्न-~भावनाके समय इन पाँचमेंसे कौनसा भाव ध्यान करने योग्य है अर्थात् ध्येय है ? उत्तर-भावनाके समय पारिणामिकभाव ध्यान करने योग्य है अर्थात् ध्येय है। ध्येयभूत द्रव्यरूप शुद्ध पारिणामिकभाव त्रिकाल रहते हैं इसलिये वे ध्यान करने योग्य है। (२) प्रश्न-पारिणामिकभावके आश्रयसे होनेवाला ध्यान भावनाके समय ध्येय क्यों नहीं है ? उत्तर-यह ध्यान स्वयं पर्याय है इसलिये विनश्वर है, पर्यायके आश्रयसे शुद्ध अवस्था प्रगट नही होती, इसलिये वह ध्येय नही है। [समयसारमें, जयसेनाचार्य कृत टीकाका अनुवाद पृ० ३३०-३३१] (३) प्रश्न-शुद्ध और अशुद्ध मेदसे पारिणामिकभावके दो प्रकार नही हैं किन्तु पारिणामिकभाव शुद्ध ही है, क्या यह कहना ठीक है ?
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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