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________________ २१४ मोक्षशास्त्र धान रहितं त्रैलोक्योदर विवरण वर्ति समस्त वस्तुगतानंत धर्म प्रकाशकमखंड प्रतिभासमयं केवलज्ञानं पूर्वमेव तिष्ठति" । तथा गा. २६ की टीका में भी कहा है कि ...'अत्र स्वयं जातमिति वचनेन पूर्वोक्तमेव निरुपाधित्वं समर्थितं । तथा च स्वयमेव सर्वज्ञो जातः सर्वदर्शी च जातो निश्चयनयेनेति पूर्वोक्तमेव सर्वज्ञत्वं सर्वदर्शीत्वं च समर्थितमिति ।" तथा गाथा १५४ की टीकामें कहा है कि....."समस्त वस्तुगतानंत धर्माणां युगपद्विशेष परिच्छित्ति समर्थ केवलज्ञान" (५) परमात्मप्रकाश अ० २ गा. १०१ की सं. टीकामें कहा है कि-"जगत्त्रय कालत्रयवर्ति समस्त द्रव्यगुण पर्यायाणांकमकरण व्यवधान रहित्वेन परिच्छित्ति समर्थ विशुद्ध दर्शन ज्ञानं च ।" (६) समयसारजी शास्त्र में आत्म द्रव्यको ४७ शक्ति कही है उनमें सर्वज्ञत्वशक्ति का स्वरूप ऐसा कहा है कि "विश्वविश्व विशेष भाव परिणतात्मज्ञानमयी सर्वज्ञशक्तिः । अर्थः-समस्त विश्वके (छहों द्रव्यके) विशेष भावोंको जानने रूपसे परिणमित आत्मज्ञानमयी सर्वज्ञत्वशक्ति ॥१०॥" नोंध-सर्वज्ञ मात्र आत्मज्ञ ही है ऐसा कहना ठीक नहीं है कारण कि-संपूर्ण आत्मज्ञ होनेवाला, परद्रव्योंको भी सर्वथा, सर्व विशेष भावों सहित जानता है। विशेषके लिये देखो-आत्मधर्म मासिक वर्ष ९ अंक नं. ८ सर्वज्ञत्व शक्तिका वर्णन; कोई असत् कल्पना द्वारा सर्वज्ञका स्वरूप अन्यथा मानते हैं उसका तथा सर्वज्ञ वस्तुप्रोंके अनंतधर्म को नही जानते ऐसा मानते हैं उनका उपरोक्त कथनके आधारसे निराकरण हो जाता है।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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