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________________ (३) प्रश्न:साधक है ? अध्याय १ परिशिष्ट १ - क्या व्यवहार सम्यग्दर्शन निश्चय सम्यग्दर्शनका १९२७ -~ उचर:- - प्रथम जब निश्चय सम्यग्दर्शन प्रगट होता है तब विकल्प रूप व्यवहार सम्यग्दर्शनका प्रभाव होता है । इसलिये वह ( व्यवहार सम्यग्दर्शन ) वास्तव में निश्चय सम्यग्दर्शनका साधक नहीं है, तथापि उसे भूतनैगमनयसे साधक कहा जाता है, अर्थात् पहिले जो व्यवहार सम्यग्दर्शन था वह निश्चय सम्यग्दर्शनके प्रगट होते समय अभावरूप होता है, इसलिये जब उसका प्रभाव होता है तब पूर्वकी सविकल्प श्रद्धाको व्यवहार सम्यग्दर्शन कहा जाता है । ( परमात्म प्रकाश गाथा १४० पृष्ठ १४३, प्रथमावृत्ति संस्कृत टीका ) इसप्रकार व्यवहार सम्यग्दर्शन निश्चय सम्यग्दर्शनका कारण नही, किन्तु उसका अभाव कारण है । (११) व्यवहाराभास सम्यग्दर्शनको कभी व्यवहार सम्यग्दर्शन भी कहते हैं । द्रव्यलिंगी मुनिको आत्मज्ञानशून्य आगमज्ञान, तत्त्वार्थश्रद्धान और संयमभावकी एकता भी कार्यकारी नही है [ देखो मोक्षमार्ग प्रकाशक देहलीवाला पृष्ठ ३४९ ] यहाँ जो 'तत्त्वार्थं श्रद्धान' शब्दका प्रयोग हुआ है सो वह भाव निक्षेपसे नही किन्तु नाम निक्षेपसे है । ‘जिसे स्व-परका यथार्थं श्रद्धान नही है किन्तु जो वीतराग कथित देव, गुरु और धर्म-इन तीनोंको मानता है तथा अन्यमतमें कथित देवादि को तथा तत्त्वादिको नही मानता, ऐसे केवल व्यवहार सम्यक्त्वसे वह निश्चय सम्यक्त्वी नाम नही पा सकता' । ( पं० टोडरमलजी कृत रहस्यपूर्ण चिट्ठी ) उसका गृहीत मिथ्यात्व दूर होगया है इस अपेक्षासे व्यवहार सम्यक्त्व हुआ है ऐसा कहा जाता है किन्तु उसके अगृहीत - मिथ्यादर्शन है इसलिये वास्तव में उसे व्यवहाराभास सम्यग्दर्शन है । 2
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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