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________________ मोक्षशास्त्र मिथ्यादृष्टि जीवको देव गुरु धर्मादिका श्रद्धान श्राभासमात्र होता है, उसके श्रद्धानमेंसे विपरीताभिनिवेशका प्रभाव नहीं हुआ है, और उसे व्यवहार सम्यक्त्व श्राभासमात्र है, इसलिये उसे जो देव, गुरु धर्म; नव तत्त्वादिका श्रद्धा है सो विपरीताभिनिवेशके प्रभाव के लिये कारण नहीं हुआ, और कारण हुए बिना उसमें [ सम्यग्दर्शनका ] उपचार संभवित नही होता, इसलिये उसके व्यवहार सम्यग्दर्शन भी संभव नही है, उसे व्यवहार सम्यक्त्व, मात्र नामनिक्षेपसे कहा जाता है [ मोक्षमार्ग प्रकाशक म० ९ पृष्ठ ४७६-४७७ देहलीका ] १२८ (१२) सम्यग्दर्शन के प्रगट करनेका उपाय प्रश्न - सम्यग्दर्शनके प्रगट करनेका क्या उपाय है ? ( १ ) उत्तर- - आत्मा और परद्रव्य सर्वथा भिन्न हैं, एकका दूसरे में अत्यत प्रभाव है । एक द्रव्य, उसका कोई गुण या पर्याय दूसरे द्रव्यमें, उसके गुरणमें या उसकी पर्यायमे प्रवेश नही कर सकते, इसलिये एक द्रव्य दूसरे द्रव्यका कुछ भी नही कर सकता, ऐसी वस्तुस्थितिकी मर्यादा है | और फिर प्रत्येक द्रव्यमें अगुरुलघुत्त्व गुण है क्योकि वह सामान्यगुरण है । उस गुणके कारण कोई किसीका कुछ नही कर सकता । इसलिये आत्मा परद्रव्यका कुछ नही कर सकता, शरीरको हिला डुला नही सकता, द्रव्यकर्म या कोई भी परद्रव्य जीवको कभी हानि नही पहुँचा सकता,यह पहिले निश्चय करना चाहिये । इसप्रकार निश्चय करनेसे जगतके परपदार्थोके कर्तृत्वका जो अभिमान श्रात्मा के अनादिकालसे चला रहा है वह दोष मान्यतामेंसे और ज्ञानमेंसे दूर हो जाता है । शास्त्रोमें कहा गया है कि द्रव्यकर्म जीवके गुणोंका घात करते हैं, इसलिये कई लोग मानते हैं कि उन कर्मोंका उदय जीवके गुणोंका वास्तव
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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