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________________ १२६ मोक्षशास्त्र उत्तर:- - वह निश्चय सम्यक्त्व है, व्यवहार सम्यक्त्व नहीं । - प्रश्नः - पंचास्तिकायकी १०७ वी गाथाकी संस्कृत टीकासे उसे व्यवहार सम्यक्त्व कहा है । - उत्तर: – नही, उसमें इसप्रकार शब्द हैं- " मिध्यात्वोदयजनित विपरीताभिनिवेश रहितं श्रद्धानम्", यहाँ 'श्रद्धान' कहकर श्रद्धानकी पहिचान कराई है, किन्तु उसे व्यवहार सम्यक्त्व नही कहा है व्यवहार और निश्चय सम्यक्त्वकी व्याख्या गाथा १०७ में कथित 'भावारणम्' शब्दके अर्थ में कही है । प्रश्न:- - 'अध्यात्मकमलमातंड' की सातवीं गाथा में उसे व्यवहार सम्यक्त्व कहा है, क्या यह ठीक है ? उत्तरः- नहीं, वहाँ निश्चय सम्यक्त्वकी व्याख्या है, द्रव्यकर्मके उपशम, क्षय इत्यादिके निमित्तसे सम्यक्त्व उत्पन्न होता है - इसप्रकार निश्चय सम्यक्त्वकी व्याख्या करना सो व्यवहारनयसे है क्योकि वह व्याख्या परद्रव्यकी अपेक्षासे की है । अपने पुरुषार्थसे निकाय सम्यक्त्व प्रगट होता है यह निश्चयनयका कथन है । हिन्दीमें जो 'व्यवहार सम्यक्त्व' ऐसा अर्थ किया है सो यह मूल गाथाके साथ मेल नही खाता । (१०) व्यवहार सम्यग्दर्शनकी व्याख्या (१) पंचास्तिकाय, छहद्रव्य तथा जीव पुगलके संयोगी परिणामोंसे उत्पन्न श्राश्रव, बन्ध, पुण्य, पाप, संवर, निर्जरा और मोक्ष इसप्रकार नव पदार्थोके विकल्परूप व्यवहार सम्यक्त्व है । [ पंचास्तिकाय गाथा १०७ जयसेनाचार्यकृत टीका पृष्ठ १७० ] (२) जीव, प्रजीव, आश्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन सात तत्त्वोकी ज्योकी त्यों यथार्थ अटल श्रद्धा करना सो व्यवहार सम्यग्दर्शन है । [ छहढाला, ढाल ३ छन्द ३ ]
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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