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________________ मोक्षशास्त्र अब सम्यग्ज्ञान के भेद कहते हैं:मतिश्रुतावधिमनः पर्ययकेवलानि ज्ञानम् ॥ ६ ॥ श्रर्थ - मतिज्ञान श्रुतज्ञान अवधिज्ञान मन:पर्ययज्ञान और केवलज्ञान ये पाँच [ ज्ञानम् ] ज्ञान है । ५२ टीका (१) मतिज्ञान - पाँच इन्द्रियों और मनके द्वारा ( अपनी शक्तिके अनुसार ) जो ज्ञान होता है उसे मतिज्ञान कहते है । श्रुतज्ञान-‍ - मतिज्ञानके द्वारा जाने हुये पदार्थको विशेषरूपसे जानना सो श्रुतज्ञान है । अवधिज्ञान - जो द्रव्य क्षेत्र काल और भावकी मर्यादा सहित इंद्रिय या मनके निमित्तके बिना रूपी पदार्थोको प्रत्यक्ष जानता है उसे अवधिज्ञान कहते है | मन:पर्ययज्ञान - जो द्रव्य क्षेत्र काल और भावकी मर्यादा सहित इन्द्रिय अथवा मनकी सहायताके विना ही दूसरे पुरुषके मनमें स्थित रूपी पदार्थोको प्रत्यक्ष जानता है उसे मन:पर्ययज्ञान कहते हैं । केवलज्ञान - समस्त द्रव्य और उनकी सर्व पर्यायोंको एक साथ प्रत्यक्ष जाननेवाले ज्ञानको केवलज्ञान कहते हैं । (२) इस सूत्र में 'ज्ञानम्' शब्द एक वचनका है वह यह बतलाता है कि ज्ञानगुण एक है और उसकी पर्यायके ये ५ भेद है । इनमें जव एक प्रकार उपयोगरूप होता है तव दूसरा प्रकार उपयोगरूप नही होता, इसीलिये इन पाँचमेसे एक समयमे एक ही ज्ञानका प्रकार उपयोगरूप होता है । सम्यग्ज्ञान सम्यग्दर्शनपूर्वक होता है; सम्यग्दर्शन कारण और सम्यज्ञाना है । सम्यग्ज्ञान आत्माके ज्ञानगुरणको शुद्ध पर्याय है, यह आत्मा मे कोई भिन्न वस्तु नही है । सम्यग्ज्ञानका स्वरूप निम्न प्रकार है: -
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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