SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय १ सूत्र ८ ५१ २ - कोई कहता है कि 'वस्तु' एक ही है, उसमें किसी प्रकारके भेद नहीं हैं । 'संख्या' को सिद्ध करनेसे यह तर्क खंडित करदी गई है। ३- कोई कहता है कि - 'वस्तुके प्रदेश ( आकार ) नही है' । 'क्षेत्र' के सिद्ध करनेसे यह तर्क खंडित करदी गई है । ४- कोई कहता है कि ' वस्तु क्रिया रहित है' । स्पर्शन, के सिद्ध करनेसे यह तर्क खंडित करदी गई है । [ नोट: - एक स्थानसे दूसरे स्थानपर जाना सो क्रिया है ] ५- 'वस्तुका प्रलय (सर्वथा नाश) होता है' ऐसा कोई मानता है । 'काल' के सिद्ध करनेसे यह तर्क खंडित करदी गई है । ६ - कोई यह मानता है कि 'वस्तु क्षणिक है' । 'अंतर' के सिद्ध करने से यह तर्क खंडित करदी गई है । ७- कोई यह मानता है कि 'वस्तु कूटस्थ है' । 'भाव' के सिद्ध करने से यह तर्क खंडित करदी गई है । [ जिसकी स्थिति न बदले उसे कूटस्थ कहते है । ] ८- कोई यह मानता है कि 'वस्तु सर्वथा एक ही है अथवा वस्तु सर्वथा अनेक ही है' । 'अल्पबहुत्व' - के सिद्ध करनेसे यह तर्क खंडित करदी गई है । [ देखो प्रश्नोत्तर सर्वार्थसिद्धि पृ० २७७-२७८ ] सूत्र ४ से ८ तकका तात्पर्यरूप सिद्धान्त जिज्ञासु जीवोंको जीवादि द्रव्य तथा तत्त्वोंका जानना, छोड़ने योग्य मिथ्यात्व - रागादि तथा ग्रहण करने योग्य सम्यग्दर्शनादिकके स्वरूपकी पहिचान करना, प्रमारण और नयोंके द्वारा तत्त्वज्ञानकी प्राप्ति करना तथा निर्देश स्वामित्वादि और सत् संख्यादिके द्वारा उनका विशेष जानना चाहिये ।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy