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________________ ५० मोक्षशास्त्र हारकाल है । कालकी मर्यादाको स्थिति कहते हैं अर्थात् 'स्थिति' शब्द इस बातको बतलाता है कि अमुक पदार्थ, अमुक स्थानपर इतने समय रहता है, इतना काल और स्थितिमें अंतर है । 'भाव' शब्दका निक्षेपके सूत्रमें उल्लेख होने पर भी यहाँ किसलिये कहा है ? निक्षेपके सूत्र ५ वे मे भावका अर्थ यह है कि वर्तमानमें जो अवस्था मोजूद हो उसे भाव निपेक्ष समझना और भविष्यमें होनेवाली अवस्थाको वर्तमानमें कहना सो द्रव्य निक्षेप है । यहाँ ५ वें सूत्रमें 'भाव' शब्दसे औपशमिक क्षायिक आदि भावोंका ग्रहण किया है जैसे श्रोपशमिक भी सम्यग्दर्शन है और क्षायिक आदि भी सम्यग्दर्शन कहे जाते हैं । इसप्रकार दोनों जगह ( ५ वें और ८ वे सूत्रमें ) भाव शब्दका पृथक् प्रयोजन है । विस्तृत वर्णनका प्रयोजन कितने ही शिष्य अल्प कथनसे विशेष तात्पर्य को समझ लेते हैं और कितने ही शिष्य ऐसे होते हैं कि विस्तारपूर्वक कथन करने पर समझ सकते है | परम कल्याणमय आचार्यका सभी को तत्त्वों का स्वरूप समझानेका उद्देश्य है । प्रमारण नयसे ही समस्त पदार्थोंका ज्ञान हो सकता है तथापि विस्तृत् कथनसे समझ सकने वाले जीवोंको निर्देश आदि तथा सत् संख्यादिकका ज्ञान करानेके लिये पृथक् २ सूत्र कहे हैं । ऐसी शंका ठीक नही है कि एक सूत्रमें दूसरेका समावेश हो जाता है इसलिये विस्तारपूर्वक कथन व्यर्थ है । ज्ञान संबंधी विशेष स्पष्टीकरण प्रश्न: : - इस सूत्रमें ज्ञानके सत्-संख्यादि आठ भेद ही क्यों कहे गये हैं, कम या अधिक क्यों नही कहे गये ? - उत्तरः- - निम्नलिखित आठ प्रकारका निषेध करनेके लिये वे आठ भेद कहे गये हैं: १ - नास्तिक कहता है कि 'कोई वस्तु है ही नही' । इसलिये 'सत्' को सिद्ध करनेसे उस नास्तिककी तर्क खंडित करदी गई है ।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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