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________________ ६४ मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन प्राप्ति है और यही इस मन्त्रका यथार्थ फल है, किन्तु इस फल की प्राप्तिके लिए आत्मामे क्षायिक सम्यक्त्वकी योग्यता अपेक्षित है । माहात्म्य हमारे आगममे इस मन्त्रकी बडी भारी महिमा बतलायी गयी है । यह सभी प्रकार की अभिलाषाओको पूर्ण करनेवाला है । आत्मशोधनका णमोकार मन्त्रका हेतु होते हुए भी नित्य जाप करनेवालेके रोग, शोक, आधि, व्याधि आदि सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं । पवित्र, अपवित्र, रोगी, दुखी, सुखी आदि किसी भी अवस्था में इस मन्त्रका जप करनेसे समस्त पाप भस्म हो जाते हैं तथा बाह्य और अभ्यन्तर पवित्र हो जाता है । यह समस्त विघ्नोको दूर करनेवाला तथा समस्त मगलोमे प्रथम मगल है । किसी भी कार्यके आदिमे इसका स्मरण करने से वह कार्य निर्विघ्नतया पूर्ण हो जाता है । बताया गया है । एसी पचणमोयारो सव्वपावपणासणी | मगलाणं च सव्वेसि पढम होइ मंगल || इस गाथाकी व्याख्या करते हुए सिद्धचन्द्रगणिने लिखा है - " एप पञ्चनमस्कारः एष—प्रत्यक्ष विधीयमानः पञ्चानामर्हदादीनां नमस्कार. - प्रणामः । स च कीदृश: ? सर्वपापप्रणाशन | सर्वाणि च तानि पापानि सर्वपापानि इति कर्मधारयः । सर्वपापानां प्रकर्षेण नाशनी -- विध्वसक सर्वपापप्रणाशनः इति तत्पुरुषः । सर्वेषां द्रव्यभावभेदमिन्नानां मङ्गलानां प्रथममिदमेव मङ्गलम् । च समुच्चये पञ्चसु पदेषु चतुर्थ्यर्थपु पष्ठी । अत्र चाष्टपष्टिरक्षराणि, नव पदानि अष्टौ च संपदो - विश्रामस्थानानि । , पुनः सर्वेषां मङ्गलानां - मङ्गलकारकवस्तूना दधिदूर्वाक्षतचन्दननालिकेर पूर्णकलश-स्वस्तिक दर्पण-भद्रासन - वर्धमान मत्स्यट् गल श्रीवत्सनन्द्यावर्तादीना मध्ये प्रथम मुख्यं मङ्गल मङ्गलकारको भवति । यताऽस्मिन् पटिते जप्ते स्मृते च सर्वाण्यपि मङ्गलानि भवन्तीत्यर्थः । " - 1
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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