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________________ मगलमन्त्र णमोकार · एक अनुचिन्तन अनादि द्वादशागवाणीका अंग होनेसे यह महामन्त्र अनादि है। इस महामन्त्रके सम्बन्धमे निम्न श्लोक प्रसिद्ध है। अनादिमूलमन्त्रोऽय सर्वविघ्नविनाशनः । मगरेपु च सर्वेपु प्रथमं सगलं मतः ॥ द्रव्यायिक नयको अपेक्षासे यह मंगलसूत्र अनादि है और पर्यायायिक नयकी अपेक्षा सादि है। इसी प्रकार यह नित्यानित्य रूप भी है । कुछ ऐतिहासिक विद्वानोका अभिमत है कि साधु शब्दका प्रयोग साहित्यमे अधिक पुराना नहीं है अत इस अर्थमे ऋषि-मुनि शब्द ही प्राचीनकालमे प्रचलित थे। णमोकार मन्त्रमे 'साहण पाठ है, अतः यह शब्द हो इस बातका द्योतक है कि यह मन्त्र अनादि नही है । इस शब्दका समाधान पहले ही किया जा चुका है, क्योकि शब्दरूपमे निवद्ध यह मन्त्र अवश्य सादि है अर्थकी अपेक्षा यह अनादि है। इमे अनादि कहनेका अर्थ यही है कि द्रव्याथिक नयकी अपेक्षा इसे अनादि कहा गया है । किसी भी कार्यका फल दो प्रकारसे प्राप्त होता है-तात्कालिक और कालान्तरमावी। इस महामन्त्रके स्मरणते ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय आदि कोका क्षय होकर वल्याण-श्रेयोमार्गकी प्राप्ति होना, इसका तात्कालिक फल है। अनादिकर्म लिप्त आत्मा इस महामन्त्रके स्मरणसे तत्काल ही श्रद्धालु हो सम्यक्त्वकी ओर अग्रसर होता है । पचपरमेष्ठीका पविन मरण व्यक्तिको आत्मिक वल प्रदान करता है। यत पचपरमेष्ठीके स्मरणने आत्मागे पवित्रता आती है, शुभ परिणति उत्पन्न हो जाती है और आत्मामे ऐनी शक्ति उत्पन्न हो जाती है, जिससे वह स्वयमेव ही धमकी ओर नगर होती है। अत तात्कालिक फल आत्मशुद्धि है। कालान्तरभावी फलमे आत्माको शुभ परिणति के कारण अर्थ-धन, ऐश्वर्य अभ्युदय और काम~-सासारिक भोग, सुम्ब, स्वास्थ्य आदिके साथ स्वर्गादिकी प्राप्ति है । वास्तवमे णमोकार मन्त्रको उद्देश्य मोक्ष
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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