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________________ ' : 1 f 4 : 1 मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन ५३ अन्तर है | अरुहतका अर्थ है कि जिनका पुनर्जन्म अब न हो अर्थात् कर्म वोजके जल जानेके कारण जिनका पुनर्जन्मका अभाव हो गया है, वे अरुहन कहलाते हैं । देवोके द्वारा अतिशय पूजनीय होनेके कारण महंत कहे जाते हैं । इसी अरहतको लेखकोने अहंत लिखा है, अर्थात् प्राकृत शब्दको संस्कृत मानकर महंत पाठ भी लिखा जाने लगा । षट्खण्डागमकी घवला टीकाके देखनेसे अवगत होता है कि आचार्य वीरसेन के समयमे भी इस महामन्त्र के अरहत और अरुहंत पाठान्तर थे । उनके इस मन्त्रकी व्याख्या में प्रयुक्त 'अतिशयपूजार्हत्वाद्वार्हन्तः' तथा 'भ्रष्टवीजवन्निशक्ती कृताघातिकर्मणो हननात्' वाक्योसे स्पष्ट सिद्ध है कि यह व्यास्या उक्त पाठान्तरोको दृष्टिमे रखकर ही की गयी होगी । यद्यपि स्वय वीरसेनाचार्यको मूलपाठ ही अभिप्रेत था, इसी कारण व्याख्या के अन्तमे उन्होने अरिहन पद ही प्रयुक्त किया है, फिर भी व्याख्या की शैलीसे यह स्पष्ट प्रकट हो जाता है कि उनके सामने पाठान्तर थे । व्याकरण और अर्थ की दृष्टिसे उक्त पाठान्तरोंमे कोई मौलिक अन्तर न होने के कारण उन्होने उनकी समीक्षा करना उचित न समझा होगा । इसी प्रकार आइरियाण, आयरियाण पाठोके अर्थमे कोई भी अन्तर नही है । प्राकृत व्याकरणके अनुसार तथा उच्चारणादिके कारण इनमे अन्तर पड गया है । रकारोत्तरवर्ती इकारको दीर्घ करना केवल उच्चारणकी सरलता तथा लयको गति देनेके लिए हो सकता है । इसी प्रकार इकारके स्थानपर यकारका पाठ भी उच्चारणके सौकर्यके लिए ही किया गया प्रतीत होता है । अत णमोकार मन्त्रका शुद्ध और आगमसम्मत पाठ निम्न हैणमो अरिहताण णमो सिद्धाणं णमो आइरियाण | णमो उवज्झायाण णमो कोए सव्व साहूणं ॥ 'श्वेताम्बर परम्परामे इस मन्त्रका पाठ निम्न प्रकार उपलब्ध होता हैनमो अरिहताण नमो सिद्वाण नमो आयरियाण | नमो उवज्झायाण नमो नमो लोए सव्व साहूणं ॥
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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