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________________ ५४ मंगलमन्त्र णमोकार - एक अनुचिन्तन ___ सप्तस्मरणानिमे 'अरिहनाण के तीन पाठ बतलाये गये हैं-'भत्र पाठत्रयम् -अरहताण, अरिहंताणं, अरुहताणं' । अर्थात् अरहत, अरिहंत और अरुहत इन तीनो पदोका अर्थ पूर्वके समान इन्द्रादिके द्वारा पूज्य, धातिया कर्मोके नाशक, कर्मवीजके विनाशक रूपमे किया गया है । उच्चारण-सरलताके लिए आइरियाणके स्थानपर आयरियाण पाठ है । इसमे अर्थकी कोई विशेपता नहीं है। इस प्रकार श्वेताम्बर आम्नायके पाठोमे दिगम्बर आम्नायके पाठोकी अपेक्षा कोई मौलिक भेद नहीं है । जो कुछ भी अन्तर है वह 'नमो' पाठमै है। इस सम्प्रदायके आगमिक ग्रन्थोमे भी 'रण' के स्थानपर 'न' पाया जाता है । इसका कारण यह है कि अर्धमागधी प्राकृतमे विकल्पसे 'ण' के स्थानपर 'न' होता है। दिगम्बर आम्नायके साहित्यकी प्राकृत प्रायः जैन शोरसेनी है जो महाराष्ट्रीके नकारके स्थानपर णकार होनेमे समता रखती है। किन्तु श्वेताम्बर सम्प्रदायके साहित्यकी प्राकृत भाषा मर्धमागधी है, इसमे णकारके स्थानपर णकार और नकार दोनो प्रयोग पाये जाते हैं । बताया गया है कि "महाराष्ट्र या नकारस्य सर्वदा णकारी जायतेऽर्द्धमागध्या तु नकारणकारी द्वावपि ।" यथा "छणं छण परिणाय लोगसद्धं च सम्बसो।"-भाचा० १-२-३-१०३ । परन्तु इस सम्बन्धमे एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि भापाके परिवर्तनसे शब्दोको शक्तिमे कमी आती है, जिससे मन्त्रशास्त्र के रूप और मण्डलमे विकृति हो जाती है और साधकको फल-पाप्ति नहीं हो पाती है । अतः णमो पाठ ही समीचीन है, इस पाठके उच्चारण मनन और चिन्तनमे आत्माकी शक्ति अधिक लगती है तथा फलप्राप्ति शीघ्र होती है। मन्त्रोच्चारणसे जिस प्राण-विद्युत्का सचार किया जाता है, वह 'णमो' के धर्पणसे ही उत्पन्न की जा सकती है। अतएव शुद्ध पाठ ही काममे लेना चाहिए।
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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