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________________ ५२ मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन णमोकार मन्त्रके पाठान्तर प्राचीन हस्तलिखित पुस्तकोंमे णमोकार मन्त्र के पाठान्तर भी उपलब्ध होते हैं । श्वेताम्वर आम्नायमे मोके स्थानपर नमो पाठ प्रचलित है । अतएव सक्षेप मे इस मन्त्रके पाठान्तरोपर विचार कर लेना भी आवश्यक है । दिगम्बर परम्परामे इस मन्त्रका मूलपाठ तो पट् खण्डागमके प्रारम्भमे लिखित ही है । इस पुस्तकमे भी इसी पाठको मूलपाठ माना गया है । पाठान्तर दिगम्बर परम्पराके अनुसार निम्न प्रकार हैं • 'अरिहताण के स्थानपर मुद्रित ग्रन्थोमे अरहताण, प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थोमे अहंताण' तथा अरुहंताण' पाठ भी मिलते हैं । इसी प्रकार 'आइरियाण' के स्थानपर आयरियाण, आइरीयाण ४ आइरिआण पाठ भी 3 ५ 1 पाये जाते हैं | अन्य पदोके पाठमे कुछ भी अन्तर नहीं है, ज्योंके त्यो हैं । यदि अरिहाण के स्थानपर अरहताण और अरुहनाग या अहंताण पाठ रखे जाते हैं, तो प्राकृत व्याकररणकी दृष्टिसे अरुनाण और अरहताण दोनो पदोसे अर्हत् शब्द निष्पन्न होता है । अत दोनो शुद्ध हैं, पर अर्थ में - १ यह पाठान्तर - गुटके में – जैन सिद्धान्त भवन आराम मिलता है। न १२ त २. गुटके में आरम्भमें भरहताण लिखा हे पश्चात् काटकर अरुहताणं लिखा गया है । प्राकृत पंचमहागुरु मार्ग में अहंताणके स्थानपर अरुहा पाठ आया है । ३ मुद्रित और हस्तलिखित पूजापाठ सम्बन्धी अधिकाश प्रतियों में । ४ मुद्रित अधिकांश प्रतियों में । ५ हस्तलिखित ส १२ गुटके में ।
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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