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________________ मंगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन ३७ भस्म हो जाते हैं । मोहका अभाव होते ही यह आत्मा ज्ञानाग्नि द्वारा अनन्तदर्शन, अनन्तज्ञान, अनन्तवीर्य और अनन्तसुखको प्राप्त कर लेता है। वैदिक धर्मानुयायियोमे जो ख्याति और प्रचार गायत्री मन्त्रका है, बौद्धोमे त्रिसरण - त्रिशरण मन्त्रका है, जैनोमे वही ख्याति और प्रचार _ णमोकार मन्त्रका है । समस्त धार्मिक और सामाणमोकार-मन्त्रका जिक कृत्योके आरम्भमे इस महामन्त्रका उच्चारण अर्थ किया जाता है। जैन-सम्प्रदायका यह दैनिक जाप-मन्त्र है । इस मन्त्रका प्रचार तीनो सम्प्रदायो - दिगम्बर, श्वेताम्बर और स्थानकवासियोमे समान रूपसे पाया जाता है। तीनो सम्प्रदायके प्राचीनतम साहित्यमे भी इसका उल्लेख मिलता है। इस मन्त्रमे पांच पद अट्ठावन मात्रा और पैतीस अक्षर हैं । मन्त्र निम्न प्रकार है - णमो अरिहताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं । ___णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व-साहूणं ॥ अर्थ - अरिहन्तो या अर्हन्तोको नमस्कार हो, सिद्धोको नमस्कार हो, आचार्योंको नमस्कार हो, उपाध्यायोको नमस्कार हो और लोकके सर्वसाधुओंको नमस्कार हो। __ 'णमो अरिहताण' भरिहननादरिहन्ता नरकतिर्यक्कुमानुष्यप्रेतवासगताशेषदु स्वप्राप्तिनिमित्तत्वादरिोह । तथा च शेषकर्मव्यापारो वैफल्यमुपेयादिति चेन्न, शेषकर्मणा मोहतन्त्रत्वात् । न हि मोहमन्तरेण शेषकर्माणि स्वकार्यनिष्पत्ती व्यापृतान्युपलभ्यन्ते येन तेषा स्वातन्त्र्य जायते । मोहे विनष्टेऽपि कियन्तमपि काल शेषकर्मणां सचोपलम्मान तेषां तत्तन्त्रत्वमिति चेन, विनष्टेरौ जन्ममरणप्रबन्धलक्षणसंसारोत्पादनसामर्थ्यमन्तरेण तत्सत्वस्यासत्वसमानत्वात् केवलज्ञानाद्यशेषात्मगुणाविर्भावप्रतिबन्धनप्रत्ययसमर्थस्वाच्च । तस्यारेहननादरिहन्ता। रजोहननाहा अरिहन्ता । ज्ञानहगावरणानि रजांसीव बहिरङ्गान्तरगाशेपत्रिकालगोचरानन्तार्थव्यञ्जनपरिणामात्मकवस्तुविषयबोधानुभव
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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