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________________ मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन अनुभवजन्य ज्ञानका परिमार्जन भी णमोकार मन्त्रके द्वारा ही सम्भव है। इस मन्त्रमे निरूपित आदर्श अहकार और ममकारका निरोध करनेमे सहायक होता है । अत आत्मोत्थानके लिए यह अनुभव मगलवाक्योके रसायन-द्वारा ही उपयोगी हो सकता है। मंगलवाक्य ही इसका परिष्कार करते हैं। जिस प्रकार गन्दा पानी छाननेसे निर्मल हो जाता है, उसी प्रकार णमोकार मन्त्रकी साधनासे सासारिक अनुभव शुद्ध होकर आत्मिक बन जाता है । 'तीसरे प्रकारका अनुभव आत्मिक या आध्यात्मिक होता है। इस अनुभवसे उत्पन्न आनन्द अलोकिक कहलाता है । इस प्रकारके अनुभवकी उत्पत्ति सत्संगति, तीर्थाटन समीचीन ग्रन्थोके स्वाध्याय, प्रार्थना एव मगलवाक्योके स्मरण, मनन और पठनसे होती है। यही अनुभव आत्माकी अनन्त शक्तियोकी विकास-भूमि है और इसपर चलनेसे आकुलता दूर हो जाती है । णमोकार मन्त्रकी साधना मनुष्यकी विवेक बुद्धिकी वृद्धि और इच्छाओंको संयमित करती है, जिससे मानवकी भावनाएं परिमार्जित हो जाती हैं। अतएव विकारोसे उत्पन्न होनेवाली अशान्तिको रोकने तथा आत्मिक शान्तिको विकसित करनेका एकमात्र साधन णमोकार महामन्त्र ही है। यह प्रत्येक व्यक्तिको बहिरात्मा अवस्थासे दूर कर अन्तरात्मा और परमात्मा अवस्थाकी ओर ले जाता है । आत्मबलका आविर्भाव इस मन्त्रकी साधनासे होता है । जो व्यक्ति आत्मबली हैं, उनके लिए ससारमे कोई कार्य असम्भव नही । आत्मबल और आत्मविश्वासकी उत्पत्ति प्रधान रूपमे आराध्यके प्रति भावसहित उच्चार किये गये प्रार्थनामय मगल. वाक्यो द्वारा ही होती है। जिन व्यक्तियोमे उक्त दोनो गुण नहीं हैं, वे मनुष्य धर्मके उच्चतम शिखरपर चढनेके अधिकारी नहीं । जिस प्रकार , प्रचण्ड सूर्यके समक्ष घटाटोप मेघ देखते-देखते विलीन हो जाते हैं, उसी प्रकार पचपरमेष्ठीकी शरण जानेसे ~ उनके गुणोके स्मरणसे, उनकी प्रार्थनासे आत्माका स्वकीय विज्ञान धन एवं निराकुलतारूप सुख अनुभवमे आने लगता है तथा शक्ति इतनी प्रवल हो जाती है कि अन्तर्मुहुर्तमे कम
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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