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________________ मंगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन ३५ जिन संसारी जीवोकी आत्मामे कषायें वर्तमान हैं, वे भी क्षीण कषायवाले व्यक्तियोंके अनुकरणसे अपनी कपाय भावनाओको दूर कर सकते हैं। साधारण मनुष्यकी प्रवृत्ति शुभ या अशुभ रूपमे सामनेके उदाहरणोके अनुसार ही होती है। मनोविज्ञान बतलाता है कि मनुष्य अनुकरणशील प्राणी है, यह अन्य व्यक्तियोंका अनुकरण कर अपने ज्ञानके क्षेत्रको विस्तृत और समृद्ध करता रहता है । अतएव स्पष्ट है कि णमोकार मन्त्रमे प्रतिपादित अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्वसाधुकी आत्मा शुद्ध चिद्रूप है, इनके स्मरण और चिन्तनसे शुद्ध चिद्रूपकी प्राप्ति होती है। दर्शनशास्त्र के वेत्ता मनीषियोने अनुभव तीन प्रकारका बतलाया है - सहज, इन्द्रियगोचर और अलौकिक । इन तीनो प्रकारके अनुभवोसे ही मनुष्य आनन्दकी प्राप्ति करता है तथा अपने मन और अन्तःकरणका विकास करता है । सहज अनुभव उन व्यक्तियोको होता है, जो भौतिकवादी हैं तथा जिनका आत्मा विकसित नही है। ये क्षुधा, तृषा, मैथुन, मलमूत्रोत्सर्जन आदि प्राकृतिक शरीरसम्बन्धी मांगोकी पूर्तिमें ही सुख और पूनिके अभावमे दुखका अनुभव करते रहते हैं। ऐसे व्यक्तियोमे आत्मविश्वासको मात्रा प्रायः नही होती है, इनकी समस्त क्रियाएँ शरीराधीन हुआ करती हैं । णमोकार मन्त्रकी साधना इस सहज अनुभवको आध्यात्मिक अनुभवके रूपमे परिवर्तित कर देती है तथा शरोरकी वास्तविक उपयोगिता और उसके स्वरूपका बोध करा देती है। दूसरे प्रकारका अनुभव प्राकृतिक रमणीय दृश्योके दर्शन, स्पर्शन आदिके द्वारा इन्द्रियोको होता है, यह प्रथम प्रकारके अनुभवकी अपेक्षा .. सूक्ष्म है, किन्तु इस अनुभवसे उत्पन्न होनेवाला आनन्द भी ऐन्द्रियिक आनन्द र है, जिसमे आकुलता दूर नहीं हो सकती है । मानसिक वेचैनी इस प्रकारके पोर अनुभवसे और बढ जाती है । विकारोकी उत्पत्ति इससे अधिक होने लगती वन है तथा ये विकार नाना प्रकारके रूप धारण कर मोहक रूपमे प्रस्तुत है। राहोते हैं जिससे अहकार और ममकारकी वृद्धि होती है। अतएव इस .... Animunremain
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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