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________________ २४८ मंगलमन्त्र णमोकार · एक अनुचिन्तन जस्स वर-धम्मचक्कं, दिणयर-विवं व भासुरछायं । तेएण पज्जलंतं, गच्छद पुरभो जिणिंदस्स ॥१२॥ आयासं पायालं, सयलं महिमंडलं पयास । मिच्छत्त-मोह-तिमिरं, हरेइ त्ति इहं पि लोयाणं ॥१३॥ नमस्कार करनेके लिए झुके हुए सुरासुरेश्वरोके मुकुटोसे गिरते हुए पुष्पो-द्वारा पूजित चरणवाले अर्हन्त महावीर वर्षमानके आगे सूर्य-विम्बके समान देदीप्यमान और तेजसे उद्भासित धर्मचक्र चलता है। यह धर्मचक्र आकाश, पाताल और समस्त पृथ्वीमण्डलको प्रकाशित करता हुमा यहाँके प्राणियोके मिथ्यात्वरूपी अन्धकारका हरण करे ॥११-१३।। सयलंमि वि जियलोए, चिंतियमित्तो करेइ सत्ताणं । रक्खं रक्खस-हाइणि - पिसाय गह-जस्ख भूयाणं ॥१४॥ यह णमोकार मन्त्र चिन्तनमानसे समस्त जीवलोकमे राक्षस, डाकिनी, पिशाच, ग्रह, यक्ष और भूत-प्रेतोंसे प्राणियोंकी रक्षा करता है ।।१४।। लहइ विवाए वाए, ववहारे मावभो सरंतो य । जूए रणे व रायंगणे य विजयं विसुद्धप्पा |१५|| भावपूर्वक इसका स्मरण करते हुए शुद्धात्मा वाद-विवाद, व्यवहार, जुआ, युद्ध एव राजदरबारमे विजय प्राप्त करता है ।।१।। पच्चूस-पभोसेसुं, सययं मन्त्रो जणो सुह-ज्झाणो । एवं झाएमाणे, मुक्खं पइ साहगो होइ ॥१६ शुभ ध्यानसे युक्त भव्य जीव इस णमोकार मन्त्रका प्रात तथा सायकाल निरन्तर ध्यान करनेसे मोक्ष साधक बनता है ।।१६।। वेयाल - रुह-दाणच • नरिंद - कोह ढि-रेवईणं च । सम्वेसि सत्ताण, पुरिसो अपराजिओ होइ ॥१॥ इस मन्त्रका स्मरण करनेवाला पुरुष वेताल, रुद्र, राक्षस, राजा, कुष्माण्डी, रेवती तथा सम्पूर्ण प्राणियोसे अपराजित होता है ॥१७॥
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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