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________________ मगलमन्त्र णमोकार - एक अनुचिन्तन २४९ विज्जुव्व पज्जलंसी, सन्वेसु व अपखरेसु मत्ताओ। पंच-जमुक्कार-पए, इक्किक्के उवरिमा जाव ॥१८॥ ससि-धवल-सलिल-निम्मल-मायारसहं च वणियं विदुं । जोयण-सय-प्पमाण, 'जाला-सयसहस्स- दिपंतं ॥१९॥ णमोकार मन्त्रके पदोंमे स्थित समस्त अक्षरोंमे मात्राएं बिजलीकी तरह प्रकाशमान हैं और इन मात्राओमे प्रत्येक मात्रापर चन्द्रके समान धवल, जलके सदृश निर्मल, आकारसहित एक सौ योजन प्रमाणवाली, लाखो ज्वालाओसे युक्त विन्दु वर्णित हैं ॥१८-१९॥ सोलससु अक्षरेसु, इक्किक्कं भक्खरं जगुज्जोयं । भव-सयसहस्ल-महणो, जंमि ठिो पच नवकारो ॥२०॥ लाखों जन्म-मरणोको दूर करनेवाले णमोकार मन्त्रकी शक्ति जिनमे स्थित है, उन सोलह अक्षरोमे-से प्रत्येक अक्षर जगत्का उद्योत करनेवाला है ॥२०॥ जो थुणइ हु इक्कमणो, भविओ भावेण पंच-नवकारं । सो गच्छइ सिवलोयं उज्जोयंतो दस-दिसामो ॥२॥ जो भव्य जीव भावपूर्वक एकाग्र चित्त होकर इस पचनमस्कारकी दृढतापूर्वक स्तुति करता है, वह दसों दिशाओंको प्रकाशित करता हुआ मोक्ष प्राप्त करता है ॥२१॥ " तव-नियम संजम-रहो, पच-नमुक्कार सारहि-निउत्तो। नाण-तुरंगम-जुत्तो, नेइ पुरं परम-निव्वाणं ॥२२॥ तप-नियम-सयमरूपी रथ पंचनमस्काररूपी सारथी तथा ज्ञानरूपी घोडोसे युक्त हुआ स्पष्ट ही परम निर्वाणपुरमे ले जाता है ।।२२।। सुद्धप्पा सुद्धमणा, पंचसु समिईसु सजुय-तिगुत्तो। मि रहे लग्गो, सिम्बं गच्छद ( स ) सिवलोयं ॥२३॥ पच समिति और तीन गुप्तियोंसे युक्त जो शुद्ध मनवाला शुद्धात्मा इस विजयशाली रथमे बैठता है, वह शीघ्न मोक्षको प्राप्त करता है ।।२३।।
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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