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________________ २४४ स्थविरकल्पि मंगलमन्त्र णमोकार,एक अनुचिन्तन परद्रव्योंसे भिन्न आत्मद्रव्यको 1 IMM अनुभवमे लाना ही स्व-समय है । स्वामित्व, ४९ जो भिक्षु वस्त्र और पात्र अपने पास रखकर संयमकी साधना करता है - वह स्थविरकल्पि कह लाता है । स्थायीमाव ७८ जब किसी प्रकारका भाव मनमें बार-बार उठता है अथवा एक ही प्रकारकी उमंग जब मनमें अधिक देर तक ठहरती है तब वह मनमे विशेष प्रकारका स्थायी भाव पैदा कर देती है । स्थिति १२४ कर्मोंका जीव के साथ अमुक समय तक बँधे रहनेका नाम स्थितिवन्ध है । स्मरण ७८ पूर्वानुभूत अनुभवो अथवा घटनामोको पुन वर्तमान चेतनामें लानेकी क्रियाको स्मरण कहते हैं । स्व-संवेदन ज्ञान ३१ ज्ञान कहलाता है । स्व-समय 11 ४५ · अपनी आत्मामें रमण करनेकी प्रवृत्ति स्व-समय है । अर्थात् किसी वस्तु अधिकारी नेका ही स्वामित्व कहते है । स्वाध्याय · चिन्तन, मननपूर्वक शास्त्रोका अध्ययन करना स्वाध्यायः क्षमा धर्म क्रोधरूप परिणति न होने देना क्षमा है । क्षयोपशम कर्मो का क्षय और होना क्षयोपशम है । क्षायिक सम्यक्व स्वानुभूत रूप ज्ञान स्व-संवेदन क्षायिक दान 7/01 201 दर्शन मोहनीयकी तोनं, प्रकृतियाँ और अनन्तानुवन्धी चार; इन सात प्रकृतियोंके क्षयसे जो सम्यक्त्व उत्पन्न होता है उसे क्षायिक सम्य क्त्व कहते हैं । 811 दानान्तराय कर्मका अत्यन्त क्षय होनेसे दिव्य ध्वनि आदिके द्वारा अनन्त प्राणियोंका उपकार करनेवाला क्षायिक दान होता है।।
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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