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________________ २४५ मगलमन्त्र णमोकार - एक अनुचिन्तन क्षायिक उपभोग ४१ ज्ञानवाही उपभोग अन्तराय कर्मका ज्ञानवाही स्नायु-कोष स्नायु अत्यन्त क्षय होनेसे क्षायिक भोग- प्रवाहोको ज्ञान इन्द्रियोंसे सुपुम्ना की प्राप्ति होती है। और मस्तिष्कमे ले जाते हैं। क्षायिक मोग ११ ज्ञानात्मक ७८ भोगान्तराय कर्मका अत्यन्त ज्ञान इन्द्रियोके द्वारा सम्पादित क्षय होनेसे क्षायिक भोगकी प्राप्ति होनेवाली प्रवृत्ति ज्ञानात्मक कहहोती है। लाती है। क्षायिक लाम ४१ ज्ञानावरण लाभान्तराय कर्मका अत्यन्त जीवके ज्ञान गुणको आच्छाक्षय होनेसे क्षायिक लाभ होता है। दित करनेवाला कर्म ज्ञानावरणीय ज्ञान-केन्द्र ७८ कर्म कहलाता है। ____ मस्तिष्कमे ज्ञानवाही नाडियो- ज्ञानोपयोग २६ का जो केन्द्र स्थान है - वही ज्ञान जोवकी जानने रूप प्रवृत्तिको केन्द्र कहलाता है। - ज्ञानोपयोग कहते हैं। . - - -
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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