SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन २४३ १७५ १७९ सम्यक चारित्र २७ साधन १२४ तत्त्वार्थ श्रद्धानके साथ चारित्र- वस्तुके उत्पन्न होनेके कारणोका होना सम्यक् चारित्र है। को साधन कहते हैं । सम्यग्ज्ञान २० सावधि तत्त्व श्रद्धानके साथ ज्ञानका जिन व्रतोके करनेके लिए होना सम्यक् ज्ञान है। दिन, मास या तिथिकी अवधि सम्यग्दर्शन निश्चित रहती है, वे बत सावधि जीव, मजीव आदि सातो कहलाते हैं। तत्त्वो का श्रद्धान करना सम्यग्- सिद्धगात दर्शन है। जाति, जरा, मरण आदिसे सल्लेखना रहित समस्त सुखका भाण्डार सिद्ध बुद्धिपूर्वक काय और कपायको अवस्था ही सिद्ध गति है। अच्छी तरह कृश करना सल्लेखना सुखासन - आरामपूर्वक पलहत्थी मार कर बैठना ही सुखासन है । सहज किया स्कन्ध १४२ उत्तेजनाका सबसे सरल कार्य दो या दोसे अधिक परमासहज क्रियाएं, जैसे - छीकना, खुजलाना, आंसू आना आदि हैं। णुओके समूहको स्कन्ध कहते हैं। स्तम्सन महज अनुभव ३५ नदी, समुद्र या तेजीसे आती भूख-प्यास आदि शारीरिक हुई सवारीकी गतिका अवरोध मांगोकी पूर्तिमे ही सुख और उनकी करानेवाले मन्त्र स्तम्भन कहलाते पूर्तिके अभावमे दुखका अनुभव हैं। इन मन्त्रोसे जलती हुई अग्निके करना सहज अनुभव है । यह वेगको या वेगसे आक्रमण करते अनुभव पशु कोटिका माना जाता हुए शत्रु की गतिको अवरुद्ध किया जा सकता है। १०५ ७८ ak - - ---
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy