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________________ मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन १८७ हुई और णमोकार मन्त्रका ध्यान करती रही । प्रभावतीकी घडतासे प्रसन्न होकर देवने अपना वास्तविक रूप धारण किया और रानीसे बोला-' देवि ! आप धन्य है । मैं देव हूँ, मैंने चण्डप्रद्योतकी सेनाको उज्जयिनी पहुंचा दिया है तथा विक्रियावलसे आपकी सेना और प्रजाको मूच्छित कर दिया है । मैं आपके सतीत्व और भक्तिभावकी परीक्षा कर रहा था । मैं आपसे बहुत प्रसन्न हूँ । सापके ऊपर किसी भी पकारकी अब विपत्ति नही है। मध्यलोक वास्तवमे सती नारियोके सतीत्वपर ही अवलम्बित है।" इस प्रकार कहकर पारिजात पुष्पोसे रानीकी पूजा की, आकाशमे दुन्दुभि बाजे बजने लगे, पुष्पवृष्टि होने लगी । पचपरमेष्ठीकी जय और जिनेन्द्र भगवान्की जयके नारे सर्वत्र सुनाई पड़ते थे। णमोकारको आराधनाके प्रभावसे रानी प्रभावतीने अपने शीलकी रक्षा की तथा आर्थिकासे दीक्षा ग्रहण कर तप किया, जिससे ब्रह्मस्वर्गमे दस सागरोपम आयु प्राप्त कर महधिदेव हुई। ___ इसी ग्रन्यकी बारहवीं कथामे बताया गया है कि जिनपालित मुनि एक दिन एकाकी विहार करते हुए आ रहे थे। उज्जयिनीके पास आतेआते सूर्यास्त हो गया, अत रातमे गमन निषिद्ध होनेसे वह भयंकर श्मशानभूमिमे जाकर ध्यानस्थ हो गये। सूर्योदय तक इसी स्थानपर ध्यानपर रहेंगे, ऐसा नियम कर वही एक ही करवट लेट गये । धनुपाकार होकर उन्होने ध्यान लगाया। योगमे मुनिराज इतने लीन थे कि उन्हे अपने शरीरका भी होश नहीं था। __मध्यरात्रिमे उज्जयिनीका विडम्ब नामक साधक मन्त्रविद्या सिद्ध करनेके लिए उमी श्मशानभूमिमे आया। उसने योगस्थ जिनपालित मुनिको मुरदा समझा, अत पासकी चिताओसे दो-तीन मुरदे और खीच लाया । जिनपालित मुनि और अन्य मुरदोको मिलाकर उसने चूल्हा तैयार किया और इस चूल्हेमें आग जलाकर भात बनाना आरम्भ किया। जब आगकी लपटें जिनपालित मुनिके मस्तकके पास पहुंची, तब भी वह ध्यानस्थ रहे । उन्होने अग्निकी कुछ भी परवाह नहीं की। मुनिराज सोचने
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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