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________________ मंगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन · १८६ जलका त्याग कर इस मन्त्रका ध्यान किया । राजा चण्ड प्रद्योतकी सेना जिस समय नगर मे उपद्रव कर रही थी, उसी समय आकाश मागंसे अकृत्रिम चैत्यालयोकी वन्दना के लिए देव जा रहे थे । प्रभावती के मन्त्रस्मरणके प्रभावसे देवोका विमान रौरवपुरके ऊपरसे नही जा सका । देवाने अवधिज्ञानसे विमानके अटकनेका कारण अवगत किया तो उन्हें मालूम हुआ कि इस नगर मे घिरी सतीके ऊपर विपत्ति आयी है । सतीके ऊपर होनेवाले अत्याचारको अवगत कर एक सम्यग्दृष्टि देव उसकी रक्षाके लिए उद्यत हुआ । उसने अपनी शक्ति से चण्डप्रद्योतकी सेनाको उडाकर उज्जयिनीमे पहुँचा दिया और नगरका सारा उपद्रव शान्त कर दिया । रानी प्रभावतीकी परीक्षा करनेके लिए उस देवने चण्डप्रद्योतका रूप धारण किया और समस्त प्रजाको महानिद्रामे मग्न कर विक्रिया ऋद्धिके वलसे चतुरग सेना तैयार की और गढको चारो ओरसे घेर लिया । नगरमे मायावी आग लगा दी, मार्ग और सड़कोपर कृत्रिम रक्तकी धार बहने लगी, सर्वत्र भय व्याप्त कर दिया और प्रभावती देवी के पास आकर बोला"मैंने तुम्हारी सेनाको मार डाला है अब आप पूरी तरहसे मेरे अधीन हैं; अत आँखें खोलकर मेरी ओर देखिए ? आपके पति उद्दायन राजाको भी पकडकर कैद कर लिया है । अव मेरा सामना करनेवाला कोई नही है | आप मेरे साथ चलिए और पटरानी वनकर संसारका आनन्द लीजिए। आपको किसी प्रकारका कष्ट नही होने दूंगा ।" रानी राजा चण्डप्रद्योत के रूपधारी देवके वचनोको सुनकर णमोकार मन्त्रके ध्यानमे और भी लीन हो गयी और स्थिरतापूर्वक जिनेन्द्र प्रभुके गुणोका चिन्तन करने लगी। उसने निश्चय किया कि प्राण जाने तक शीलको नही छोड़ंगी । इस समय णमोकार मन्त्र हो मेरा रक्षक है। पचपरमेष्ठीकी शरण हो मेरे लिए सहायक है। इस प्रकार निश्चय कर वह ध्यानमें और दृढ हो गयी । देवने पुनः कहा - " अब इस घ्यानसे कुछ नही होगा, तुम्हे मेरे वचन मानने पडेंगे ।" परन्तु प्रभावती तनिक भी विचलित नहीं
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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